आर्य समाज के कार्य
1. आर्य समाज के धार्मिक कार्य
आर्य समाज ने हिन्दू धर्म को एक नवीन रूप दिया। उसने पुरापंथी हिन्दू धर्म का खंडन किया और वेदों को धर्म की आधारशिला और सत्य ज्ञान को मूल स्त्रोत माना। आर्य समाज ने अनेक देव-देवताओं मे विश्वास, मूर्ति-पूजा, ब्राह्रा कर्मकांड, बलि प्रथा, अवतारवाद तथा उन सभी कुरीतियों और विश्वासों की भर्त्सना की, उनका खंडन किया जिन्होंने हिन्दू समाज व धर्म को विकृत कर दिया। उसने वैदिक धर्म का प्रचार किया और वेदों पर आधारित मंत्र, पाठ, यज्ञ-हवन आदि पर बल दिया।
2. शुद्धिकरण
ईसाई प्रचारकों तथा मुसलमानो ने अछूत एवं अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक ईसाई तथा मुस्लिम धर्म अंगीकार करने के लिए बाध्य किया था। धर्म परिवर्तित हिन्दू मूलतः पुनः धर्म प्रवेश हेतु छटपटा रहे थे। स्वामी जी ने बलपूर्वक धर्म परिवर्तित भारतीयों को वैदिक विधि से पुनः हिन्दू धर्म मे समाहित किया। लाखों नव-मुस्लिम एवं नव-क्रिश्चियन इस शुद्धिकरण की प्रक्रिया से पुनः हिन्दू धर्म मे सम्मिलित किए गए।
3. सामाजिक कार्य
स्वामी दयानंद सरस्वती प्रखर बुद्धि के राष्ट्रवादी सुधारक थे। उन्होंने भारतीय समाज मे प्रचलित बाल विवाह, पर्दा प्रथा, बहुविवाह, जाति प्रथा, अस्पृश्यता आदि बुराइयों को खत्म करने का सराहनीय कार्य किया। वे समाज की बुराइयों के कटू आलोचक थे। स्वामीजी ने स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह तथा अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहित कर स्त्री समाज के उन्नयन का कार्य किया। उन्होंने विधवाश्रम तथा अनाथालयों की स्थापना की एवं समाज मे प्रचलित जादू-टोना एवं अंधविश्वासों को जड़मूल से समाप्त करने का अथक प्रयत्न किया। स्वामीजी ने समाज मे ब्राह्मणों के प्रभुत्व को खत्म कर सभी को वेदों का अध्ययन करने तथा अछूतों को भी उचित स्थान प्रदान करने का प्रयास किया।
4. राजनैतिक व राष्ट्रीय कार्य
आर्य समाज ने देश की राष्ट्रीय और राजनीतिक चेतना मे भी योगदान दिया। इसने हिन्दी का राष्ट्रीय भाषा के रूप मे प्रचार किया। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार व स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना सिखाया। पश्चिमी विचारों, आदर्शों और संस्कृति को अपनाये जाने के विरोध मे आर्य समाज ने आंदोलन किया। विदेशी सभ्यता के विनाशकारी प्रभावों को समाप्त किया। यह उग्रवादी होने से इसने तीव्र राष्ट्रीयता को जन्म दिया। कांग्रेस के राष्ट्र-निर्माण के कार्यक्रम के अनेक भागों की प्रेरणा का श्रेय आर्य समाज को है। इसने दृढ़ चरित्र तथा स्वतंत्रता के प्रति प्रेम उत्पन्न किया। इसने लाला लाजपतराय और स्वामी श्रद्धानंद जैसे अनेक कट्टर आर्य सामाजी नेता राजनीतिक क्षेत्र मे उतारें।
5. आर्य समाज की साहित्यिक एवं शैक्षणिक देन
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती संस्कृत साहित्य तथा हिन्दी भाषा के प्रकांड पंडित थे। स्वामी जी ने छात्रों के जीवन मे ब्रह्मचर्य के महत्व को स्थापित कर गुरूकुल शुरू किए। इन गुरुकुलों अथवा आश्रमों मे जातिगत भेदभाव से दूर सभी जाति के बालकों के साथ समान व्यवहार किया जाता था। आर्य समाज ने भारत मे कई स्थानों पर डी. ए. वी. विद्यालय तथा महाविद्यालय स्थापित किए।