क्रान्ति ( 1789 ) से पहले फ्रांस की आर्थिक स्थिति
फ्रांस की आर्थिक स्थिति अत्यन्त कठिन दौर से गुजर रही थी, ऐसे में सरकार की फिजूलखर्ची ने दशा को और भी शोचनीय बना दिया। उस समय फ्रांस में कर दो प्रकार के थेप्रत्यक्ष और परोक्ष। प्रत्यक्ष कर (टाइल) जायदाद, व्यक्तिगत संपत्ति तथा आय पर लिए जाते थे। कुलीन वर्ग और पादरी इनमें से कुछ करों से तो बिल्कुल मुक्त थे और शेष करों से प्रायः मुक्त थे, क्योंकि कर निर्धारण करने वाले राज्य-कर्मचारी डरकर उन पर नाममात्र का कर लगाया करते थे। उसकी सारी कमी शेष जनता पर कर लगाकर पूरी की जाती थी और इस प्रकार उस पर करों का अत्यधिक भार था। कुलीन-वर्ग और पादरी भी सम्पन्न थे, रुपये में तीन आने भी कर नहीं देते थे जबकि मध्यमवर्ग के व्यक्ति से प्रायः दस गुना कर वसूल लिया जाता था। परोक्ष करों में मुख्य रूप से नमक, शराब, तंबाकू आदि पर लिए जाने वाले कर थे।
दूषित कर-व्यवस्था के फलस्वरूप राज्य जनता की सम्पत्ति का राष्ट्रीय कामों के लिए उपयोग नहीं कर सकता था। उसकी वाणिज्य-नीति भी ऐसी थी जिसमें राज्य में सम्पत्ति की उत्पत्ति भी पूरी तरह न हो पाती थी। फ्रेंच व्यापार अभी पूरी तरह से उन्नति नहीं कर पाया था। इस दोषपूर्ण अर्थ-व्यवस्था का परिणाम यह निकला कि राज्य का व्यय सदैव ही उसकी आय से अधिक रहा था तथा इस घाटे की पूर्ति हेतु सरकार को ऋण का आश्रय लेना पड़ा। अमेरिका के ब्रिटिश उपनिवेशों के स्वतंत्रता-संग्राम में भाग लेने के सरकारी निर्णय ने स्थिति को और अधिक गंभीर बना दिया। अगर इस संघर्ष में सम्मिलित होने के समय को फ्रांस सरकार के संकट का प्रारम्भ-बिन्दु माना जाए तो अत्युक्ति न होगी। इस संघर्ष की सफल समाप्ति ने फ्रांस में स्वतंत्रता की भावना को बल ही प्रदान