फ्रांस की क्रान्ति के समय फ्रांस की राजनीतिक स्थिति
1. फ्रांस की क्रान्ति के समय फ्रांस पर लुई सोलहवें को शासन था। 1774 ई. में अपने पितामह की मृत्यु के बाद वह कठिन परिस्थिति में सिंहासनारूढ़ हुआ, उस समय राजकोष रिक्त था। राजा के ऊपर अत्यधिक ऋण भार था। इस परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए जिस योग्यता की आवश्यकता थी, वह लुई में नहीं थी।
2. दूसरे फ्रांसीसी राजाओं की भाँति उसकी पत्नी मैरी इंटोइनेट का शासन पर अत्यधिक प्रभाव था। उसकी इच्छा शक्ति बड़ी दृढ़ थी, उसमें साहस था और तुरंत निर्णय भी कर सकती थी। इस प्रकार जो गुण राजा में नहीं थे वे उसमें विद्यमान थे परन्तु उसमें भी शासन की समस्याओं को समझने तथा उनका समाधान करने की योग्यता नहीं थी। उसे अपने आमोद-प्रमोद से मतलब था। वह सदा लोभी, चाटुकारों से घिरी रहती थी जो उस समय की व्यवस्था से लाभ उठाते थे और इसी कारण सुधार के शत्रु थे।
3. तत्कालीन फ्रांस के प्रांतीय शासन को दो प्रकार के प्रांतों में बाँटा गया था। एक प्रकार के प्रांत गवर्नमेंट कहलाते थे, जिनकी संख्या 40 थी। इनमें से अधिकांश फ्रांस के प्राचीन प्रांत थे। इनका शासन में कोई सहभागिता नहीं था। इन प्रांतों के गवर्नर उच्च वर्ग के कुलीन लोग होते थे। ये लोग अधिक वेतन पाते थे और राजा के सानिध्य में ऐशो-आराम की जिन्दगी व्यतीत करते थे।
४. शासन का वास्तविक कार्य फ्रांस के 36 अन्य प्रान्त करते थे, जिन्हें जेनरेलिटी कहते थे। प्रत्येक जेनरेलिटी में राजा द्वारा नियुक्त एक कर्मचारी होता था जिसे इंटेंडेट कहते थे। ये कर्मचारी मध्यम वर्ग के लोग होते थे तथा राजा के आदेशों का पालन करते थे। इन्हें जन आकांक्षाओं की ओर ध्यान देने की स्वतंत्रता नहीं थी। इसलिए ये अपने अधीन काम करने वालों में बहुत अलोकप्रिय होते थे।
५. सरकारी पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि पहुँच के आधार पर होती थी। स्थानीय स्वशासन की कोई व्यवस्था नहीं थी।
६. स्थानीय कर्मचारियों को भी छोटी-छोटी बातों के लिए केन्द्र से आदेश प्राप्त करना पड़ता था। इस तरह शासन में जनता की भूमिका नगण्य थी। इसी के परिणामस्वरूप क्रांति के समय जब जनता ने शासन-सूत्र अपने हाथ में लिया तो अनेक गल्तियाँ भी कीं।