फ्रांसीसी क्रान्ति की शुरुआती घटनायें
1. एस्टेट्स जनरल की बैठक- 5 मई, 1789 ई. को फ्रांस के शासक लुई सोलहवें ने नए करों के प्रस्ताव को 1614 ई. में निर्धारित संगठन के आधार पर वर्साय के महल में एस्टेट्स जनरल की बैठक बुलाई। इस सभा में प्रथम और द्वितीय एस्टेट के 300-300 प्रतिनिधि और तृतीय एस्टेट के 600 प्रतिनिधियों को बुलाया गया। मतदान की प्राचीन पद्धति के अनुसार एस्टेट के प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार दिया गया था लेकिन लुई सोलहवाँ लोकतांत्रिक सिद्धान्त के आधार पर एक व्यक्ति एक मत’ को अपनाने के स्थान पर कुलीन-वर्ग और साधारण वर्ग की माँगों के बीच समझौता कराना चाहता था। लुई चाहता था कि वित्तीय प्रश्न पर एक व्यक्ति एक मत’ का सिद्धान्त अपनाया जाए तथा अन्य माँगों पर वर्ग के आधार पर मतदान का सिद्धान्त अपनाया जाए।
2. राष्ट्रीय सभा की स्थापना- 6 मई, 1789 ई. को राष्ट्रीय सभा की बैठक के दूसरे दिन यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि तीन एस्टेट के सदस्य अलग-अलग भवनों में मतदान करेंगे या एक साथ एक भवन में मतदान करेंगे। सर्वसाधारण वर्ग ने अलग बैठने से मना कर दिया। सरकार ने इस गतिरोध को समाप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया। अंततः सर्वसाधारण वर्ग के प्रतिनिधियों ने स्वयं को राष्ट्रीय सभा घोषित करके एक क्रान्तिकारी कदम उठाया। क्रमशः कुलीन व पादरी वर्ग के लोग राष्ट्रीय सभा में सम्मिलित हो गए। अंततः 26 जून को लुई सोलहवें ने विवश होकर कुलीन वर्ग का सर्वसाधारण वर्ग के साथ बैठक का आदेश जारी कर दिया।
3. संविधान का प्रारूप- राष्ट्रीय सभा ने संविधान का प्रारूप तैयार कर दिया जिसका प्रमुख उद्देश्य सम्राट की शक्तियों को सीमित करना तथा एक संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना करना था जिसमें शक्तियों को विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका में बाँटा जा सके।
४. बास्तील का पतन- किसी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए सम्राट ने पेरिस में सेना को एकत्रित करना आरम्भ कर दिया। सेना को एकत्रित होता देख जन आक्रोश भड़क उठा। पेरिस में आर्थिक असन्तोष को लेकर जगहजगह दंगे भड़क उठे। ये दंगे उस भुखमरी, महँगाई और बेरोजगारी के फलस्वरूप शुरू हुए थे, जो तत्कालीन पेरिस में व्याप्त थी। आक्रोशित जनता ने 14 जुलाई को बास्तील के किले पर धावा बोल दिया। बास्तील का पतन निरंकुश शासन के पतन का प्रतीक था। फ्रांस में प्रत्येक वर्ष 14 जुलाई का दिन राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनाया जाता है। धीरे-धीरे यह आंदोलन गाँवों में फैल गया। किसानों ने ग्रामीण किलों को नष्ट करके अन्न भंडारों को लूट लिया और लगान संबंधी दस्तावेजों को नष्ट कर दिया गया। कुलीन-वर्ग के लोग बड़ी संख्या में दूसरे क्षेत्रों अथवा देशों में पलायन कर गए।
४. संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना- जनता की शक्ति को भाँपते हुए फ्रांस के राजा लुई सोलहवें ने संवैधानिक राजतंत्र को मान्यता प्रदान कर दी। इस प्रकार फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हो गई। राष्ट्रीय सभा ने एक आदेश पारित किया जिसके द्वारा धार्मिक करों को समाप्त कर दिया गया, चर्च के स्वामित्व वाली जमीन जब्त कर ली गई, पादरी-वर्ग को उसके विशेषाधिकारों को छोड़ने के लिए विवश किया गया तथा सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित किया गया।