1857 ई० की क्रांति की प्रमुख घटनाएँ
बैरकपुर में लार्ड कैनिंग ने चर्बीयुक्त कारतूस के प्रयोग के लिए भारतीय सैनिकों के साथ धोखाधड़ी की। 29 मार्च, 1857 को बंगाल छावनी के सिपाही मंगल पाण्डे ने कारतूस के प्रयोग से मना कर दिया तथा अपने साथियों को विद्रोह के लिए संगठित किया। इसके परिणाम स्वरूप मंगल पाण्डे को फाँसी दे दी गयी।
मेरठ में 9 मई की घटना के अनुसार 90 में से 85 सिपाहियों ने कारतूस में दाँत लगाने से मना कर दिया। इस कारण इन सिपाहियों को दस वर्ष की जेल की सख्त सजा दी गयी। 19 मई, 1857 को मेरठ में तैनात पूरी भारतीय सेना ने विद्रोह कर दिया तथा जेल पर धावा बोलकर अपने साथियों को छुड़ा लिया और कई अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला।
बहराइच में हजारों सैनिकों ने दिल्ली की ओर कूच किया। वहाँ के लोग उनके साथ मिलकर लालकिले पहुँचे। वहाँ पहुँचकर बहादुरशाह-द्वितीय को भारत का शासक घोषित कर दिया।
बरेली में खान बहादुर खान ने क्रांति का नेतृत्व किया उन्होंने स्वयं को नवाब घोषित कर दिया। कैम्पबेल के नेतृत्व में यहाँ की क्रांति को दबाया गया तथा खान बहादुर खान को फाँसी दे दी गई।
कानपुर में नाना साहब पेशवा घोषित कर दिए गए। अजीम उल्ला खाँ नाना साहब का सहयोगी था। नाना साहेब ने अंग्रेजों की सारी फौज को कानपुर से खदेड़ दिया।
आजमगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व बाबू कुँवर सिंह ने किया। अतरौलिया नामक स्थान पर उन्होंने मिलमैन एवं डेन्स की संयुक्त अंग्रेजी सेना को पराजित किया। युद्ध में लड़ते-लड़ते 26 अप्रैल, 1858 ई० को इनकी मृत्यु हो गई।
झाँसी में रानी लक्ष्मी बाई सर हयूरोज की सेना के साथ बहादुरी से लड़ीं किन्तु झाँसी पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। रानी बहादुरी से लड़ते हुए मारी गयीं।