सामन्तवाद
मध्यकालीन यूरोप की एक प्रमुख विशेषता सामन्तवाद थी। रोमन साम्राज्य के पतन के बाद यूरोप में उनके छोटे-छोटे राज्य बन गए, और उनकी शक्ति भी क्षीण हो गई। इन राज्यों के राजाओं ने धन के अभाव में राज्य की भूमि को अपने विश्वासपात्र, सामन्तों में बाँट दिया और युद्ध के समय उनसे सैनिक सहायता लेनी प्रारम्भ कर दी। सामन्तवाद में राज्य की सम्पूर्ण भूमि पर राजा का अधिकार होता था। राजा राज्य की भूमि को अपने विश्वासपात्र, स्वाभिमानी एवं कर्तव्यनिष्ठ सामन्तों को दे देता था। सामन्तों को राजा से जो अधिकार प्राप्त होते थे, उन्हें सामन्ती अधिकार कहा जाता था। भूमि-वितरण की यह व्यवस्था ही यूरोप में सामन्तवाद’ कहलाती थी। यूरोप की सामन्तवादी व्यवस्था, भारत की जमींदारी व्यवस्था के ही समान थी। यह प्रथा परम्परागत थी। सामन्ती प्रथा में राजा का स्थान महत्त्वपूर्ण तथा सर्वोपरि होता था। खेतिहर कृषक ‘सर्फ’ कहलाते थे। सामन्त चर्च के साथ ताल-मेल बनाकर रखते थे। ये सामन्त अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार स्थायी सेना रखते थे और राजा के दरबार में उपस्थित होकर उसे उपहार, भेट आदि दिया करते थे। ये राजा के दरबार में आकर समय-समय पर शासन सम्बन्धी विषयों पर भी परामर्श दिया करते थे।