सामन्तवाद की विशेषताएँ
1. सार्वभौमिक सत्ता का अपहरण
सामन्तवाद की सर्वप्रमुख विशेषता स्थानीय जागीरदारों द्वारा सार्वभौम सत्ता हस्तगत करना थी। शार्लमेन के साम्राज्य के पतन के पश्चात् स्थानीय भूपतियों या जमींदारों को हस्तान्तरित कर दिया। स्थिति यह हो गई कि एक जागीरदार, जो सिद्धान्ततः अपने स्वामी और अन्ततः राजा के अधीन था, अपने क्षेत्र में सभी मामलों का स्वामी हो गया। फलतः यूरोप हजारों जागीरदारों के बीच बँट गया।
2. काश्तकारी व्यवस्था
एक दूसरी विशेषता काश्तकारी व्यवस्था (land tenure) थी। इसी पर सामन्तवादी व्यवस्था खड़ी थी। किसी सामन्त की प्रशासनिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का निर्धारण उसके द्वारा प्राप्त जागीर या भूमि के आधार पर होता था। जागीरदार अपने स्वामी से संविदास्वरूप भूमि प्राप्त करता था। संविदा के अनुसार उसे अपने स्वामी की सेवा करनी पड़ती थी। वह सहायतार्थ सेना भी भेजता था या स्वयं सैनिक के रूप में कार्य करता था। वह उसके दरबार में पुलिस-कार्य, न्याय-कार्य, या शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने का कार्य करता था।
3. सामाजिक विभाजन
सामन्तवाद ने समाज को दो वर्गों-शासक और शासित में बाँट दिया। | सामन्त या जमींदार शासक वर्ग के थे और शासित वर्ग वे थे जो खेत जोतते थे। भूमि ही समाज का ढाँचा निर्धारित करती थी।
४. व्यक्तिगत बन्धन
एक अन्य विशेषता व्यक्तिगत बन्धन (personal bond) थी. जो स्वामी और जागीरदार के सम्बन्ध को बताती है। जागीरदार अपने स्वामी के प्रति वफादार रहने के लिए शपथ लेता था। काश्तकार, जागीरदार एवं स्वामी के बीच के सम्बन्ध का निर्धारण शपथ-ग्रहण उत्सव (homage) के साथ होता था, न कि किसी राज्य के कानून द्वारा।