in इतिहास
edited
यज्ञ व धार्मिक कर्मकांड का वर्णन कीजिये

1 Answer

0 votes

edited

यज्ञ व धार्मिक कर्मकांड

इस काल में यज्ञ व अन्य धार्मिक कर्मकांडों में काफी वृद्धि हुई, यह कर्मकांड काफी जटिल व गूढ़ थे।इस काल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी पंजाब और राजस्थान में लोहे का उपयोग आरम्भ हो गया था। उत्तर वैदिक काल में यज्ञ को दो मुख्य भागों हविर्यज्ञ और सोमयज्ञ में विभाजित किया गया। हविर्यज्ञमें अग्निहोत्र, दशपूर्णमॉस, चतुर्मास्य, आग्रायण, पशुबलि, सौत्रामणी और पिंड पितृयज्ञ सम्मिलित थे। जबकि सोमयज्ञ में अग्निष्टोम, अत्याग्निष्टोम, उक्श्य, षोडशी, वाजपेय, अतिरात्र और आप्तोयीम यज्ञ शामिल थे।

राजसूय नामक यज्ञ राजा के राज्याभिषेक के लिए जाता था, इसमें सोम ग्रहण किया जाता था। राजसूय यज्ञ के दौरान राजा रत्निनी के घर जाता था। शतपथ ब्राह्मण में इसका उल्लेख मिलता है। राजसूय यज्ञ में राजा का अभिषेक सात प्रकार के जल से होता था।

अश्वमेध यज्ञ में राजा द्वारा एक घोडा छोड़ा जाता था, यह घोडा जिन क्षेत्रों से बिना किसी अवरोध के होकर गुज़रता था, वह क्षेत्र राजा का अधीन हो जाते थे। यह यज्ञ राजकीय यज्ञों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण व प्रसिद्ध था। शतपथ ब्राह्मण में राजा भरत दोष्यंती और शतानिक सत्राजित द्वारा अश्वमेध यज्ञ किया गया था।

वाजपेय यज्ञ मर राजा रथों की दौड़ का आयोजन करता था, इसमें राजा को सहयोगियों द्वारा विजयी बनाया जाता था। इस यज्ञ में राजा सम्राट बनता था, यह यज्ञ 17 दिन में सम्पूर्ण होता था।

अग्निष्टोम यज्ञ में सोम रस ग्रहण किया जाता था। इस यज्ञ से पहले यज्ञ करने वाला व्यक्ति और उसकी पत्नी एक वर्ष तक सात्विक जीवन व्यतीत करते थे।

Related questions

Follow Us

Stay updated via social channels

Twitter Facebook Instagram Pinterest LinkedIn
...