मेसोपोटामिया का शहरीकरण
5000 ई० पू० के लगभग दक्षिणी मेसोपोटामिया में बस्तियों का विकास होने लगा था। इन बस्तियों में से कुछ ने प्राचीन नगरों का रूप ले लिया था। नगर कई प्रकार के थे। पहले वे जो मंदिर के चारों ओर विकसित हुए और शेष वेदिका शाही नगर थे। बाहर से आकर बसने वाले लोगों ने (उनके मूल स्थान की जानकारी नहीं) अपने गाँवों में कुछ चुने हुए स्थानों या मंदिरों को बनाना या उसका पुनर्निर्माण करना प्रारम्भ किया। सर्वप्रथम ज्ञात मंदिर एक छोटा-सा देवालय था। यह कच्ची भट्ठी । ईंटों को बना हुआ था। मंदिर विभिन्न प्रकार के प्रवेशद्वार देवी-देवताओं के निवास स्थान थे जैसे उर जो चन्द्र देवता था और इन्नाना जो प्रेम व युद्ध की देवी थी। ये ईंटों से बने मंदिर समय के साथ बड़े हो गए क्योंकि उनके खुले आँगनों दक्षिणी मेसोपोटामिया का सबसे प्राचीन ज्ञात के चारों ओर कई कमरे बने होते थे। कुछ प्रारम्भिक मंदिर मन्दिर लगभग 5000 ई०पू० (नक्शा) साधारण किस्म के घरों के समान ही होते थे। इसका कारण यह था कि मंदिर भी किसी देवता का घर ही होता था। मंदिरों की बाहरी दीवारें कुछ विशिष्ट अंतरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई थीं। यही मंदिरों की विशेषता थी। साधारण घरों की दीवारें ऐसी नहीं होती थीं। देवता पूजा का केंद्र-बिंदु होता था। लोग देवी-देवता के लिए अन्न, दही, मछली लाते थे। आराध्य देव सैद्धान्तिक रूप से खेतों, मत्स्य क्षेत्रों और स्थानीय लोगों के पशुधन का स्वामी माना जाता था। समय आने पर उपज को उत्पादित वस्तुओं में बदलने की प्रक्रिया यहीं सम्पन्न की जाती थी। घर-परिवार के उच्च स्तर के व्यवस्थापक, व्यापारियों के नियोक्ता, अन्न, हल जोतने वाले पशुओं, रोटी, जौ की शराब, मछली आदि के आवंटन और वितरण लिखित अभिलेखों के पालक के रूप में मंदिर ने धीरे-धीरे अपने क्रिया-कलाप बढ़ा लिए और मुख्य नगरीय-संस्था का रूप ले लिया