एक बार जब बच्चन जी ने लेखक के लिए नोट लिखा तो उसने बच्चन जी के उसे नोट का जवाब देने का निर्णय लिया, किंतु अपनी आदत से मजबूर वह पत्रोत्तर न दे सका। इसके बदले में उसने एक अंग्रेजी कविता (सॉनेट) लिख डाला। इस सॉनेट को जब बच्चन ने पढ़ा तो उन्हें यह स्तरानुरूप नहीं लगा। इधर लेखक को इलाहाबाद का साहित्यिक वातावरण, मित्रों का सहयोग, बच्चन, निराला तथा पंत जैसे साहित्यकारों का मार्गदर्शन उसे हिंदी में लेखन करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था। यह सब देख उसने हिंदी में लिखने का निर्णय लिया जो बाद में भी चलता रहा। इस प्रकार अंग्रेजी में लिखने का उसका प्रयास व्यर्थ गया जिसका उसे अफसोस रहा।