लेखक बालकृष्ण के मुँह पर छाई गोधूलि को इसलिए श्रेष्ठ मानता है क्योंकि अभिजात्य वर्ग ने सौंदर्य में वृद्धि करने वाले अनेक साधनों का आविष्कार कर लिया, पर बालकृष्ण के मुख पर लगी धूल जैसा सौंदर्य बढ़ाती है, उसके सामने सारे सौंदर्य फीके नजर आते हैं। इसके अलावा इसी धूल में खेल-कूदकर शिशु बड़ा होता है। जिन बच्चों का बचपन गाँव में बीतता है, उनके धूल-धूसरित शरीर के बिना बचपन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।