लेखक ने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों को झेला है। देहरादून में रहते हुए वह बेरोजगार थे। उनकी जेब में थोड़े से रुपये हुआ करते थे। ऐसे ही समय पर किसी ने ताना दिया और वह उसी दशा में बसे द्वारा दिल्ली आ गया। यहाँ उसने उकील आर्ट स्कूल में बिना फ़ीस दाखिला लिया। उसने बोर्ड पेंटिंग करके तथा अपने भाग द्वारा भेजे गए पैसों से गुज़ारा किया। वह पैसों की कमी के कारण पैदल स्कूल आया था। उसे देहरादून जाकर अपनी ससुराल वालों की दुकान पर कंपाउंडरी सीखनी पड़ी। इलाहाबाद आकर उसने एम.ए. में प्रवेश लिया। यह काम बच्चन जी की सहायता से ही हो पाया। अंत में ‘निराला’ और ‘पंत’ जैसे साहित्यकारों के सान्निध्य में उसे कुछ काम मिला तथा कविता लेखन के लिए निरंतर अभ्यास किया। इसके अलावा पत्नी की मृत्यु होने से उसे दुख भरा एकाकी जीवन बिताना पड़ा।