माता का अँचल’ में माता-पिता के वात्सल्य का बहुत ही सरस और मनमोहक वर्णन हुआ है। बच्चे के माता-पिता में मानो वात्सल्य की होड़ है। बच्चे के पिता अपने बच्चे से माँ जैसा प्यार करते हैं। वे बच्चे को अपने साथ सुलाते हैं, जगाते हैं, नहाते-धुलाते हैं और खाना भी खिलाते हैं। उन्हें यह सब करने में बहुत आनंद मिलता है। वे कभी अपने बच्चे को डाँटते-फटकारते नहीं। वे माँ यशोदा की तरह बच्चे की एक-एक क्रीड़ा में पूरी रुचि लेते हैं। वे उसके एक-एक खेल को मानो भगवान भोलानाथ की लीला मानकर साथ देते हैं। इसलिए वे हँसकर पूछते हैं-‘फिर कब भोज होगा भोलानाथ?’ ‘इस साल की खेती कैसी रही भोलानाथ?’ पिता बच्चे से हर संभव लाड़ करते हैं। उसके साथ खेलते हैं। उससे जान-बूझकर हारते हैं। फिर उसे चूमते हैं, कंधे पर बिठाकर घूमते हैं। इन सारी क्रियाओं में उन्हें बहुत आनंद मिलता है।