आज की ग्रामीण संस्कृति में अनेक परिवर्तन हो चुके हैं। आज कुओं से सिंचाई होने की प्रथा प्रायः समाप्त हो गई है। उसकी जगह ट्यूबवैल आ गए हैं। अब बैलों की जगह ट्रैक्टर आ गए हैं। आजकल पहले की तरह बूढे दूल्हे भी नहीं दिखाई देते। आज धीरे-धीरे ग्रामीण अंचल मौज-मस्ती और आनंद मनाने की चाल को भूलता जा रहा है। वहाँ भी भविष्य, प्रगति और पढ़ाई-लिखाई का भूत सिर पर चढ़कर बोलने लगा है।