कवि दाँत निकालते बच्चे से मिला तो प्रसन्न हो उठा। शिशु की भोली मुसकान को देखकर उसके निष्प्राण जीवन में प्राण आ गए। उसे लगा मानो आज कमल के फूल तालाब में न खिलकर उसकी झोंपड़ी में उग आए हैं। उसके बूढे नीरस शरीर में इस तरह मधुरता छा गई मानो बबूल के पेड़ से शेफालिका के कोमल फूल झरने लगे हों। पहले तो शिशु कवि को पहचान नहीं सका। इसलिए वह उसे एकटक निहारता रहा। जब उसकी माँ ने उसे कवि से परिचित कराया तो वह शर्माने लगा। वह कवि को तिरछी नजरों से देखकर मुँह फेरने लगा। धीरे-धीरे उनकी नज़रें मिलीं। आपस में स्नेह उमड़ा। तब*बच्चा मुसकरा पड़ा। उसके उगते हुए दाँत दीखने लगे।