परिभाषा
यह सममात्रिक छन्द है, इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अन्त में दो गुरु होते हैं;
उदाहरण
“बंदउँ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा। ”
अमिय मूरिमय चूरन चारू, समन सकल भवरुज परिवारु।।”
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