परिभाषा
वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है और इस रस के अंतर्गत जब युद्ध या कठिन कार्य को करने के लिए मन में जो उत्साह की भावना जागृत होती है उसे ही वीर रस कहा जाता है।
आचार्य रामचंद्रा शुक्ल ने उत्सव की व्याख्या करते हुए लिखा है “जिनके कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है; उन सबके प्रति उत्कंठापूर्ण आनंद उत्साह के अंतर्गत लिया जाता है यह उत्साह, दान, धर्म, दया, युद्ध में हो सकता है
इस आधार पर चार प्रकार के वीर माने गए है
युद्धवीर
दानवीर
धर्मवीर
दयावीर
उदाहरण
साजि चतुरंग सैन अंग मै उमंग धरि ,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है
स्पष्टीकरण
यहाँ शत्रु आलंबन है चतुरंगी सेना को सजाना और अंगो मे उमंग का होना अनुभाव है अमर्ष, उमंग आदि संचारि भाव है युद्ध विषयक उत्साह स्थायी भाव है , अतः इन पंक्तियों मे वीर रस है