परिभाषा
करुण रस- इसका स्थायी भाव शोक होता है इस रस में किसी अपने का विनाश या अपने का वियोग, द्रव्यनाश एवं प्रेमी से सदैव विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है उसे करुण रस कहते हैं। यधपि वियोग श्रंगार रस में भी दुःख का अनुभव होता है लेकिन वहाँ पर दूर जाने वाले से पुनः मिलन कि आशा बंधी रहती है।
उदाहरण
इस करुणा कलित हृदय मे
अब विकल रागिनी बजती,
क्यों हाहाकार स्वरों मे
वेदना असीम गरजती ?
स्पष्टीकरण
इने पंक्तियों में प्रिय की मृत्यु होना तथा उससे उत्पन्न शोक स्थायी भाव है प्रिय की मृत्यु आलम्बन है और प्रिय की याद आना उद्दीपन विभाव है ह्रदय मे हाहाकार मचना अनुभाव है तथा स्मृति और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न शोक संचारी भाव है इस प्रकार इन पंक्तियों में करुण रस का परिपाक हुआ है।