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Pratham Singh in हिन्दी व्याकरण
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श्रृंगार रस की परिभाषा क्या है?

श्रृंगार रस के कितने रूप माने जाते हैं?

श्रृंगार रस में बिछड़ने वाले पक्ष को क्या कहते है?

सिंगार कितने प्रकार के होते हैं?

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Deva yadav

परिभाषा 

श्रृंगार रस  (Shringar Ras) में नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित रति या प्रेम जब रस के अवस्था में पहुंच जाता है तो वह श्रृंगार रस (Shringar Ras) कहलाता है। इसके अंतर्गत वसंत ऋतु, सौंदर्य, प्रकृति, सुंदर वन, पक्षियों श्रृंगार रस के अंतर्गत नायिकालंकार ऋतु तथा प्रकृति का वर्णन भी किया जाता है। श्रृंगार रस (Shringar Ras) को रसराज या रसपति भी कहा जाता है। 

उदाहरण

तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये। 
झके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाये।।

श्रृंगार रस के भेद

1. संयोग श्रृंगार

2. वियोग श्रृंगार

  •  संयोग श्रृंगार

जब नायक नायिका के परस्पर मिलन, स्पर्श, आलिंगन, वार्तालाप आदि का वर्णन होता है तब वहां पर संयोग श्रृंगार रस होता है।

 संयोग श्रृंगार रस  के उदाहरण

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय,
सौंह करे भौंहन हंसे देन कहे नटि जाय!!

थके नयन रघुपति छवि देखे।
पलकन्हि हु परिहरि निमेखे।।
अधिक सनेह देह भई भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी।।

  • वियोग श्रृंगार रस

जहां पर नायक-नायिका का परस्पर प्रबल प्रेम हो लेकिन मिलन न हो अर्थात नायक-नायिका के वियोग का वर्णन हो वहां पर वियोग रस होता है। 

वियोग श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति होता है

वियोग श्रृंगार रस के उदाहरण

उधो, मन न भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥
इन्द्री सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥

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