स्पर्धा (प्रतिस्पर्धा)
जब डार्विन ने प्रकृति में जीवन-संघर्ष और योग्यतम की उत्तरजीविता के बारे में कहा तो वह निश्चयी था कि जैव विकास में अंतरजातीय स्पर्धा एक शक्तिशाली बल है। जीवों के बीच स्थान, भोजन, जल, खनिज लवण, सम्भोग साथी तथा अन्य संसाधनों के लिए स्पर्धा होती है। जब यह स्पर्धा एक ही जाति के सदस्यों के बीच होती है तब इसे अन्तरजातीय स्पर्धा (interspecific competition) कहते हैं तथा जब स्पर्धा विभिन्न प्रजाति के जीवों के बीच होती है। तब इसे अन्तराजातीय स्पर्धा (intraspecific competition) कहते हैं। इस प्रकार स्पर्धाएँ निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं –
(i) अन्तराजातीय स्पर्धा (Intraspecific Competition) – इस प्रकार की स्पर्धा भिन्न-भिन्न जातियों (species) के सदस्यों के बीच एक ही प्रकार के संसाधनों (resources) का उपयोग करने के कारण उत्पन्न होती है।
उदाहरण – जन्तुओं में परभक्षी-भक्ष्य (predator-prey) के सम्बन्ध में विभिन्न परभक्षी (predators) जन्तु अपने भक्ष्य (prey) को पाने के लिए स्पर्धा करते हैं। पौधों में विभिन्न प्रजातियाँ प्रकाश (light), पोषक पदार्थों (nutrients), वास स्थलों (habitats) के लिए आपस में स्पर्धा करती रहती हैं।
(ii) अन्तरजातीय स्पर्धा (Interspecific Competition) – इस प्रकार की स्पर्धा एक ही जाति (species) के सदस्यों के बीच पाई जाती है जिसमें एक ही जाति के विभिन्न सदस्य, आवास, भोजन, सहवास सदस्य आदि के लिए आपस में स्पर्धा करते हैं।
उदाहरण – फसल का मैदान जहाँ एक ही जाति के पौधों के बीच सीमित संसाधनों के कारण इस प्रकार की स्पर्धा पाई जाती है।