प्रकाशीय श्वसन
प्रकाशीय श्वसन (photorespiration) को समझने के लिए, हमें कैल्विन पथ के प्रथम चरण अर्थात् CO2 स्थिरीकरण के विषय में कुछ अधिक जानकारी प्राप्त करनी होगी। यह वह अभिक्रिया है जहाँ RuBP कार्बन डाइऑक्साइड से संयोजित होकर 3PGA के 2 अणुओं का गठन करता है और एक एन्जाइम रिबुलोज बिसफॉस्फेट कार्बोक्सिलेज ऑक्सीजिनेज (RuBisCO) के द्वारा उत्प्रेरित होता है।
RuBisCO एन्जाइम विश्व में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाता है क्योंकि यह CO2 एवं O2 दोनों से बन्धित हो सकता है, इसलिए इसे रुबिस्को कहते हैं। रुबिस्को में O2 की अपेक्षा CO2 के लिए अधिक बन्धुता है। कल्पना कीजिए कि यदि ऐसा नहीं होता तो क्या होता? यह बन्धुता प्रतियोगितात्मक है। O2 अथवा CO2 इनमें से कौन आबन्ध होगा, यह उनकी सापेक्ष सान्द्रता पर निर्भर करता है।
C2 पौधों में कुछ O2 RuBisCO से बन्धित होती है अत: CO2 का यौगिकीकरण कम हो जाता है। यहाँ पर RUBP, 3-PGA के अणुओं में परिवर्तित होने की बजाय ऑक्सीजन से संयोजित होकर चक्र में एक फॉस्फोग्लिसरेट अणु बनाता है जिसे प्रकाशीय श्वसन कहते हैं। प्रकाश श्वसन पथ में शर्करा और ATP को संश्लेषण नहीं होता; बल्कि इसमें ATP के उपयोग के साथ CO2 भी निकलती है। प्रकाशीय श्वसन पथ में ATP अथवा NADPH का संश्लेषण नहीं होता; अत: प्रकाश श्वसन एक निरर्थक प्रक्रिया है।
C4 पौधों में प्रकाशीय श्वसन नहीं होता है। इसका कारण यह है कि इनमें एक ऐसी प्रणाली होती है जो एन्जाइम स्थल पर CO2 की सान्द्रता बढ़ा देती है। ऐसा तब होता है जब पर्णमध्योतक का C4 अम्ल पूलाच्छद में टूटकर CO2 को मुक्त करता है, जिसके परिणामस्वरूप CO2 की अन्तराकोशिकीय सान्द्रता बढ़ जाती है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि रुबिस्को कार्बोक्सिलेज के रूप में कार्य करता है, जिससे इसकी ऑक्सीजनेज के रूप में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।