टीकाकरण
वैक्सीन अथवा टीका (vaccine) प्रायः कोशिका निलम्बन (cell suspension) होता है अथवा यह कोशिका द्वारा उत्सर्जित एक उत्पाद होता है, जो प्रतिरक्षण कर्मक (immunizing agent) के रूप में प्रयोग किया जाता है। वास्तव में, वैक्सीन प्रतिजनों (antigens) का तैयार घोल होता है, जो इन्जेक्शन द्वारा शरीर में प्रविष्ट कराने पर विशिष्ट प्रतिरक्षियों (antibodies) के निर्माण को प्रेरित करके शरीर में सक्रिय कृत्रिम प्रतिरोध क्षमता या प्रतिरक्षा उत्पन्न करता है। यह क्रिया ही टीकाकरण (vaccination) कहलाती है। सबसे पहले सन् 1798 में एडवर्ड जेनर (Edward Jenner) ने टीकाकरण की तकनीक में गौशीतला विषाणु (cowpoxvirus) को चेचक (smallpox) के विरुद्ध प्रतिरक्षण कर्मक (immunizing agent) के रूप में प्रयोग किया था। एडवर्ड जेनर को प्रतिरक्षा विज्ञान का जनक (father of immunology) माना जाता है।
टीके या वैक्सीन के प्रकार
1. जीवित प्रतिजन से निर्मित वैक्सीन – इसमें जीवित जीवाणुओं या विषाणुओं को क्षीणीकृत (attenuated) करके घोल तैयार किया जाता है, जो प्रतिजनयुक्त होता है। इस प्रकार का वैक्सीन अच्छा माना जाता है, क्योंकि इसकी थोड़ी-सी मात्रा शरीर में प्रविष्ट कराने से जीवाणु या विषाणु गुणन करके बहुत अधिक मात्रा में बढ़ जाते हैं। इसमें सूक्ष्म जीवों के अतिरिक्त उनका विष भी रहता है जिससे कि यह अधिक प्रभावशाली होते हैं तथा इनके प्रभाव से उत्पन्न प्रतिरोध क्षमता अधिक लम्बे समय तक शरीर में बनी रहती है।
2. मृत प्रतिजन से निर्मित वैक्सीन – इसमें सूक्ष्मजीवों को मृत करके उनका घोल इन्जेक्शन द्वारा शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है। इसका प्रमुख लाभ यह है कि रोगजनक सूक्ष्मजीव रोग का प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पाता है। अतः टीकाकरण के बाद इसके दुष्प्रभाव बहुत कम दिखायी। देते हैं। यह वैक्सीन जीवित प्रतिजन से निर्मित वैक्सीन की अपेक्षा कम प्रभावशाली है।
3. प्रतिजन के आविष से निर्मित वैक्सीन – कुछ रोगजनक जीवाणु जो बहि:आविष (exotoxin) उत्पन्न करते हैं, उन्हें प्रतिजन से अलग करके केवल यह आविष (toxin), आविषाभ (toxoid) के रूप में शरीर में प्रविष्ट कराकर प्रतिरक्षी एवं प्रतिआविष (antitoxin) के निर्माण के लिए उत्प्रेरित किया जा सकता है। इस श्रेणी में टिटेनस (tetanus) एवं टायफॉइड (typhoid) के वैक्सीन आते हैं जो इन रोगों के बचाव हेतु बहुत सरल एवं सुरक्षित साधन होते हैं।
4. मिश्रित वैक्सीन – कभी-कभी दो या अधिक विभिन्न प्रकार के रोगों के रोगजनक सूक्ष्मजीव अथवा प्रतिजनों के मिश्रण से एक वैक्सीन तैयार किया जाता है। इसमें सभी वैक्सीन मिलाकर एक वैक्सीन का निर्माण किया जाता है जिससे कि इसमें सभी वैक्सीन के गुण आ जाते हैं और शीघ्र ही कई रोगों के प्रति प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न हो जाती है। उदाहरण – डिफ्थीरिया-कुकुर या काली खाँसी-टिटेनस वैक्सीन (diphtheria- pertussis-tetanus vaccine = DPT)।