मौर्यकाल में स्त्रियों की स्थिति
मौर्यकाल में स्त्रियों का स्थान अपेक्षाकृत संतोषजनक था। उन्हें इस दौरान काफी स्वतंत्रता प्राप्त थी। स्त्रियों को पुनर्विवाह और नियोग की अनुमति दी गयी थी। स्त्रियाँ प्राय घर में ही रहती थीं, इस प्रकार की स्त्रियों को कौटिल्य ने अनिष्कासिनी कहा है। अर्थशास्त्र के अनुसार विवाह के लिए स्त्री की आयु 12 वर्ष तथा पुरुष की आयु 16 वर्ष होनी चाहिये। मौर्यकाल में दहेज़ प्रथा काफी प्रचलित थी। स्वतंत्र जीवन व्यतीत करने वाली विधवाओं को छंदवासिनी तथा धनी विधवा को आढय कहा जाता था।
मौर्यकाल में स्त्रियाँ गुप्तचर का कार्य भी करती थीं। स्त्रियाँ सम्राट की अंगरक्षिका का कार्य भी करती थी। अर्थशास्त्र में ऐसी स्त्रियों के लिए असूर्यपश्या, अवरोधन तथा अंतःपुर शब्दों का प्रयोग किया गया है। मौर्यकाल में स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त था।