शुक्राणु तथा डिम्ब के संयोग से गर्भ स्थापित होता है। इस अवस्था में बालक का शारीरिक विकास तीन अवस्थाओं में विकसित होकर पूर्ण होता है-
1. डिम्बावस्था
इस अवस्था में पहले डिम्ब उत्पादन होता है। इस समय अण्डे के आकार का विकास होता है। इस समय उत्पादन कोष में परिवर्तन होने लगते हैं। इस अवस्था में अनेक रासायनिक क्रियाएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे कोषों में विभाजन होना प्रारम्भ हो जाता है।
2. भ्रूणीय अवस्था
इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होने लगता है। इस समय डिम्ब की थैली में पानी हो जाता है और उसे पानी की थैली की संज्ञा दी जाती है। यह झिल्ली प्राणी को गर्भावस्था में विकसित होने में मदद देती है। जब दो माह व्यतीत हो जाते हैं तो सिर का निर्माण, फिर नाक, मुँह आदि का बनना प्रारम्भ होने लगता है। इसके पश्चात् शरीर का मध्य भाग एवं टाँगें और घुटने विकसित होने लगते हैं।
3. भूणावस्था
गर्भावस्था में द्वितीय माहसेलेकर जन्म लेने तक की अवस्था को भ्रणावस्था कहते हैं। तृतीय चन्द्र माह के अन्त तक भ्रूण 37 इंच लम्बा, 3/4 औंस भारी होता है। दो माह के बाद 10 इंच लम्बा एवं भार 7 से 10 ओंस हो जाता है। आठवें माह तक लम्बाई 16 से 18 इंच, भार 4 से 5 पौण्ड हो जाता है। जन्म के समय इसकी लम्बाई 20 इंच के लगभग तथा भार 7 या 77 पौण्ड होता है। विकास की इसी अवस्था में त्वचा, अंग आदि बन जाते हैं और बच्चे की धड़कन आसानी से सुनी जा सकती है।