द्वि-खण्ड सिद्धान्त (Two-factor Theory)
बुद्धि का प्रथम सिद्धान्त चार्ल्स स्पियरमैन (1863-1945) के द्वारा प्रतिपादित किया गया। इसको द्वि-खण्ड के नाम से पुकारते हैं। आपने इस सिद्धान्त का निर्माण सन् 1904 में पूर्ण किया। जब यह सिद्धान्त मनोविज्ञान के क्षेत्र में आया तब राष्ट्रीय विवेचन का विषय बना। यह बुद्धि के गणितीय आधार पर प्रथम सिद्धान्त माना गया, जिसने बुद्धि के क्षेत्र को आज तक प्रभावित किया है।
स्पियरमैन के अनुसार, सम्पूर्ण मानसिक कार्यों में दो प्रकार की योग्यताओं का प्रयोग होता है-
- पहली- सामान्य योग्यता (General ability, G) है।
- दूसरी- विशिष्ट योग्यता (Specific ability, S) है।
सामान्य योग्यता (G) सभी कार्यों में कम या अधिक मात्रा में पायी जाती है, लेकिन विशिष्ट योग्यता (S) किसी कार्य के लिये विशेष रूपसे आवश्यक होती है। इस प्रकार से सामान्य योग्यता एक प्रकार की होती है और विशिष्ट योग्यताएँ विभिन्न बौद्धिक कार्यों के अनुसार अनेक हो सकती हैं।
विज्ञान, दर्शन, कला, शिल्प आदि में सामान्य योग्यता के स्थान पर विशिष्ट योग्यता की आवश्यकता होगी। जिस व्यक्ति में जिस बौद्धिक क्रिया से सम्बन्धित विशिष्ट योग्यता होती, वह उसी क्रिया में विशेष उन्नति करेगा।
द्वि-खण्ड सिद्धान्त को और सरल बनाने के लिये निम्न रेखाचित्र का वर्णन करना अति आवश्यक है-
- A - शब्दावली परीक्षण
- V - गणित परीक्षण
- G - सामान्य तत्त्व
- S1 - विशिष्ट शाब्दिक योग्यता
- S2 - विशिष्ट संख्यात्मक योग्यता
उपर्युक्त आकृति के अनुसार दो परीक्षण चुने गये, जो निम्न हैं-
- A - शब्दावली परीक्षण, और
- V - गणित परीक्षण।
दोनों ही परीक्षणों में सामान्य योग्यता (G) की आवश्यकता होती है। अत: दोनों आकृतियाँ इसको निश्चित करती हैं। शब्दावली परीक्षण में विशेष योग्यता शब्दों के विशिष्ट चयन एवं प्रयोग में होती है। अत: वहाँ पर उसकी विशिष्ट योग्यता S1 का प्रयोग होता है और गणित परीक्षण में विशिष्ट योग्यता की आवश्यकता विशिष्ट संख्यात्मक विवेचन के रूप में होती है। अत: वहाँ पर S2 होता है।
अत: यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रत्येक बौद्धिक कार्य के लिये सामान्य योग्यता (G) की आवश्यकता होती है, क्योंकि उनमें धनात्मक सहसम्बन्ध होता है। लेकिन पूर्ण सहसमबन्ध इसलिये नहीं होगा, क्योंकि दोनों ही में विशिष्ट योग्यताओं की भी आवश्यकता पड़ती है।
स्पियरमैन ने आगे चलकर अपने सिद्धान्त में संशोधन किया। उन्होंने G तथा खण्डों के साथ 'समूह खण्डों' को भी स्वीकार किया। इसको उन्होंने मध्यवर्ती माना, यानी सामान्य और विशिष्ट तत्वों के बीच की मिलान पर यह तत्त्व स्थित होते हैं। इस प्रकार से सामान्य एवं विशिष्ट तत्त्वों के बीच की दूरी समाप्त हो जाती है।
अत: यह सिद्धान्त बतलाता है कि जो बालक एक बौद्धिक क्षेत्र में जो योग्यता दिखाते हैं। वे अन्य क्षेत्रों में भी योग्य होते हैं।