सृजनात्मकता और बुद्धि में सम्बन्ध
Relationship between Intelligence and Creativity
गिलफोर्ड का प्रज्ञा-गणन एवं सृजनशीलता- प्रज्ञा के गणन परसन (1950 तथा 1956) में किये गिलफोर्ड और उनके साथियों के शोधकार्य दो पृथक चिन्तन धाराओं के अस्तित्त्व को स्पष्ट करते हैं। ये हैं- अभिसारी (Convergent) चिन्तन तथा अपसारी (Divergent) चिन्तन।
पहली चिन्तन धारा में केवल एक पूर्व निर्धारित सही उत्तर निहित होता है, दूसरी चिन्तन धारा के फलस्वरूप विविध उत्तरों का जन्म होता है, जिनमें प्रवाह, नमनीयता, मौलिकता तथा विस्तरण क्रियाशीलता होती है। अभिसारी चिन्तन को बुद्धि के साथ जोड़ा जाता है तथा अपसारी चिन्तन सामान्यतया समझे जाने वाले शब्द सृजनाशीलता की ओर संकेत करता है।
अधिकतर मनोवैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि सृजनशीलता और बुद्धि के बीच एक महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध है। सृजनशील व्यक्ति बुद्धिमान प्रतीत होता है। बुद्धि और सृजनशीलता के सम्बन्ध के बारे में सामान्य निष्कर्ष यह है कि सृजनात्मक होने के कारण बुद्धि का निश्चित स्तर अनिवार्य है। निश्चित स्तर से अधिक या कम बुद्धिमान होने से व्यक्ति की सृजनशीलता के स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
यही नहीं सृजनशीलता के लिये अपेक्षित बुद्धिमानी का स्तर जो प्रत्येक क्षेत्र में अलग-अलग होता है, कभी-कभी आश्चर्यजनक रूप से बहुत कम होता है। बुद्धि परीक्षण द्वारा मापे गये बुद्धि स्तर से भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सृजनात्मक व्यक्ति जितनी भी उसकी बुद्धि है, उसका कितने प्रभावशाली ढंग से प्रयोग करता है।
प्राय: देखा गया है कि कुछ व्यक्तियों में उच्च सृजनात्मकता होती है परन्तु उनका बौद्धिक स्तर निम्न होता है। इसी प्रकार से यह भी आवश्यक नहीं है कि जिनका बौद्धिक स्तर उच्च हो, उनमें सृजनात्मकता भी उच्च स्तर की हो। उच्च बौद्धिक स्तर और उच्च सृजनात्मकता का साथ-साथ चलना बाह्य कारकों पर निर्भर करता है। सृजनात्मकता शून्य में क्रियाशील नहीं हो सकती। इसमें पूर्व अर्जित ज्ञान का उपयोग होता है। इस ज्ञान का उपयोग बौद्धिक क्षमताओं से सम्बन्धित है। अतःसृजनात्मकता और बुद्धि का समन्वय स्वाभाविक है।