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Soni in Psychology
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Name the major principles of intelligence. बुद्धि के प्रमुख सिद्धान्तों के नाम बताइये, buddhi ke pramukh siddhaanton ke naam bataiye.

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Avadhesh
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1. बिने का एक कारक सिद्धान्त

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन फ्रांस के मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने ने 1905 में किया। अमेरिका के मनोवैज्ञानिक टर्मन तथा जर्मनी के मनोवैज्ञानिक एंबिगास ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया। इस सिद्धान्त के अनुसार “बुद्धि वह शक्ति है जो समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।” इस सिद्धान्त के अनुयाइयों ने बुद्धि को समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करने वाली एक शक्ति के रूप में माना है। उन्होंने यह भी माना है कि बुद्धि समग्र रूप वाली होती है और व्यक्ति को एक विशेष कार्य करने के लिये अग्रसित करती है।

इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि एक एकत्व का खंड है जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता है। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि व्यक्ति किसी एक विशेष क्षेत्र में निपुण है तो वह अन्य क्षेत्रों में भी निपुण रहेगा। इसी एक कारकीय सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए बिने ने बुद्धि को व्याख्या-निर्णय की योग्यता माना है। टर्मन ने इसे विचार करने की योग्यता माना है तथा स्टर्न ने इसे नवीन परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की योग्यता के रूप में माना है।

2. द्वितत्व या द्विकारक सिद्धान्त-

इस सिद्धान्त के प्रवर्तक ब्रिटेन के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्पीयर मेन हैं। उन्होंने अपने प्रयोगात्मक अध्ययनों तथा अनुभवों के आधार पर बुद्धि के इस द्वि-तत्व सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनके मतानुसार बुद्धि दो शक्तियों के रूप में है या बुद्धि की संरचना में दो कारक हैं जिनमें एक को उन्होंने सामान्य बुद्धि तथा दूसरे कारक को विशिष्ट बुद्धि कहा है। सामान्य कारक या G-factor से उनका तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों में कार्य करने की एक सामान्य योग्यता होती है।

अत: प्रत्येक व्यक्ति कुछ सीमा तक प्रत्येक कार्य कर सकता है। ये कार्य उसकी सामान्य बुद्धि के कारण ही होते हैं। सामान्य कारक व्यक्ति की सम्पूर्ण मानसिक एवं बौद्धिक क्रियाओं में पाया जाता है परन्तु यह विभिन्न मात्राओं में होता है। बुद्धि का यह सामान्य कारक जन्मजात होता है तथा व्यक्तियों को सफलता की ओर इंगित करता है।

व्यक्ति की विशेष क्रियाएं बुद्धि के एक विशेष कारक द्वारा होती है। यह कारक बुद्धि का विशिष्ट कारक कहलाता है। एक प्रकार की विशिष्ट क्रिया में बुद्धि का एक विशिष्ट कारक कार्य करता है तो दूसरी क्रिया में दूसरा विशिष्ट कारक अत: भिन्न-भिन्न प्रकार की विशिष्ट क्रियाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। ये विशिष्ट कारक भिन्न-भिन्न व्यक्तियों
में भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। इसी कारण वैयक्तिक भिन्नताएं पार्इ जाती हैं।

बुद्धि के सामान्य कारक जन्मजात होते हैं जबकि विशिष्ट कारक अधिकांशत: अर्जित होते हैं।
बुद्धि के इस दो-कारक सिद्धान्त के अनुसार सभी प्रकार की मानसिक क्रियाओं में बुद्धि के सामान्य कारक  कार्य करते हैं। जबकि विशिष्ट मानसिक क्रियाओं में विशिष्ट कारकों को स्वतंत्र रूप से काम में लिया जाता है। व्यक्ति के एक ही क्रिया में एक या कई विशिष्ट कारकों की आवश्यकता होती है। परन्तु प्रत्येक मानसिक क्रिया में उस क्रिया से संबंधित विशिष्ट कारक के साथ-साथ सामान्य कारक भी आवश्यक होते हैं। जैसे- सामान्य विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, दर्शन एवं शास्त्र अध्ययन जैसे विषयों को जानने और समझने के लिए सामान्य कारक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं वहीं यांत्रिक, हस्तकला, कला, संगीत कला जैसे विशिष्ट विषयोंं को जानने ओर समझने के लिए विशिष्ट कारकों की प्रमुख रूप से आवश्यकता होती है।

अत: इससे स्पष्ट है कि किसी विशेष विषय या कला को सीखने के लिए दोनों कारकों का होना अत्यन्त अनिवार्य है। व्यक्ति की किसी विषेश विषय में दक्षता उसकी विशिष्ट योग्यताओं के अतिरिक्त सामान्य योग्यताओं पर निर्भर है। स्पीयर मेन के अनुसार ‘विषयों का स्थानान्तरण केवल सामान्य कारकों द्वारा ही संभव हो सकता है। इस सिद्धान्त को चित्र संख्या एक के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी मानसिक क्रिया में विशिष्ट कारकों के साथ सामान्य कारक भी आवश्यक है।

3. त्रिकारक बुद्धि सिद्धान्त

स्पीयरमेन ने 1911 में अपने पूर्व बुद्धि के द्विकारक सिद्धान्त में संशोधन करते हुए एक कारक और जोड़कर बुद्धि के त्रिकारक या तीन कारक बुद्धि सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। बुद्धि के
जिस तीसरे कारक को उन्होंने अपने सिद्धान्त में जोड़ा उसे उन्होंने समूह कारक या ग्रुप फेक्टर कहा।

अत: बुद्धि के इस सिद्धान्त में तीन कारक-1. सामान्य कारक 2. विशिष्ट कारक तथा 3. समूह कारक सम्मिलित किये गये हैं। स्पीयरमेन के विचार में सामान्य तथा विशिष्ट कारकों के अतिरिक्त समूह कारक भी समस्त मानसिक क्रियाओं में साथ रहता है। कुछ विशेष योग्यताएं जैसे- यांत्रिक योग्यता, आंकिक योग्यता, शाब्दिक योग्यता, संगीत योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा बौद्धिक योग्यता आदि के संचालन में समूह कारक भी विशेष भूमिका निभाते हैं। समूह कारक स्वयं अपने आप में कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखता बल्कि विभिन्न विशिष्ट कारकों तथा सामान्य कारक के मिश्रण से यह अपना समूह बनाता है। इसीलिए इसे समूह कारक कहा गया है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस सिद्धान्त में किसी प्रकार की नवीनता नहीं है। थार्नडाइक जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धान्त की आलोचना करते हुए कहा है कि समूह कारक कोई नवीन कारक नहीं है अपितु यह सामान्य एवं विशिष्ट कारकों का मिश्रण मात्र है।

4. थार्नडाइक का बहुकारक बुद्धि सिद्धान्त –

थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त में बुद्धि को विभिन्न कारकों का मिश्रण माना है। जिसमें कई योग्यताएं निहित होती हैं। उनके अनुसार किसी भी मानसिक कार्य के लिए, विभिन्न कारक एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। थार्नडाइक ने पूर्व सिद्धान्तों में प्रस्तुत सामान्य कारकों की आलोचना की और अपने सिद्धान्त में सामान्य कारकों की जगह मूल कारकों तथा उभयनिष्ठ कारकों का उल्लेख किया। मूल कारकों में मूल मानसिक योग्यताओं को सम्मिलित किया है। ये योग्यताएं जैसे-शाब्दिक योग्यता, आंकिक योग्यता, यांत्रिक योग्यता, स्मृति योग्यता, तार्किक योग्यता तथा भाषण देने की योग्यता आदि हैं। उनके अनुसार ये योग्यताएं व्यक्ति के समस्त मानसिक कार्यों को प्रभावित करती है।

थार्नडाइक इस बात को भी मानते हैं कि व्यक्ति में कोई न कोई विशिष्ट योग्यता अवश्य पायी जाती है। परन्तु उनका यह भी मानना है कि व्यक्ति की एक विषय की योग्यता से दूसरे
विषय में योग्यता का अनुमान लगाना कठिन है। जैसे कि एक व्यक्ति यांत्रिक कला में प्रवीण है तो यह आवश्यक नहीं कि वह संगीत में भी निपुण होगा।

उनके अनुसार जब दो मानसिक क्रियाओं के प्रतिपादन में यदि धनात्मक सहसंबंध पाया जाता है तो उसका अर्थ यह है कि व्यक्ति में उभयनिष्ठ कारक भी हैं। ये उभयनिष्ठ कारक कितनी मात्रा में हैं यह सहसंबंध की मात्रा से ज्ञात हो सकता है।

जैसे उदाहरण के लिए किसी विद्यालय के 100 छात्रों को दो परीक्षण । तथा B दिये गये और उनका सहसंबंध ज्ञात किया। फिर उन्हें । तथा C परीक्षण देकर उनका सहसंबंध ज्ञात किया। पहले दो परीक्षणों में । तथा B में अधिक सहसंबंध पाया गया जो इस बात को प्रमाणित करता है कि । तथा C परीक्षणों की अपेक्षाकृत । तथा B परीक्षणों मानसिक योग्यताओं में उभयनिष्ठ कारक अधिक निहित है। उनके अनुसार ये उभयनिष्ठ कुछ अंशों में समस्त मानसिक क्रियाओं में पाए जाते हैं।

5. थस्र्टन का समूह कारक बुद्धि सिद्धान्त –

थस्र्टन के समूह कारक सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि न तो सामान्य कारकों का प्रदर्शन है न ही विभिन्न विशिष्ट कारकों का, अपितु इसमें कुछ ऐसी निश्चित मानसिक क्रियाएं होती हैं जो सामान्य रूप से मूल कारकों में सम्मिलित होती है। ये मानसिक क्रियाएं समूह का निर्माण करती हैं जो मनोवैज्ञानिक एवं क्रियात्मक एकता प्रदान करते हैं।

थस्र्टन ने अपने सिद्धान्त को कारक विश्लेषण के आधार पर प्रस्तुत किया। उनके अनुसार बुद्धि की संरचना कुछ मौलिक कारकों के समूह से होती है। दो या अधिक मूल कारक मिलकर एक समूह का निर्माण कर लेते हैं जो व्यक्ति के किसी क्षेत्र में उसकी बुद्धि का प्रदर्शन करते हैं। इन मौलिक कारकों में उन्होंने आंकिक योग्यता  प्रत्यक्षीकरण की योग्यता शाब्दिक योग्यता दैशिक योग्यता शब्द प्रवाह तर्क शक्ति  और स्मृति शक्ति  को मुख्य माना।

थर्सटन ने यह स्पष्ट किया कि बुद्धि कई प्रकार की योग्यताओं का मिश्रण है जो विभिन्न समूहों में पाई जाती है। उनके अनुसार मानसिक योग्यताएं क्रियात्मक रूप से स्वतंत्र है फिर भी जब ये समूह में कार्य करती है तो उनमें परस्पर संबंध या समानता पाई जाती है। कुछ विशिष्ट योग्यताएं एक ही समूह की होती हैं और उनमें आपस में सह-संबंध पाया जाता है।

जैसे- विज्ञान विषयों के समूह में भौतिक, रसायन, गणित तथा जीव-विज्ञान भौतिकी एवं रसायन आदि। इसी प्रकार संगीत कला को प्रदर्शित करने के लिए तबला, हारमोनियम, सितार आदि बजाने में परस्पर सह-संबंध रहता है। बुद्धि के अनेक प्रकार की योग्यताओं के मिश्रण को प्रस्तुत किया है। इन योग्यताओं का संकेतीकरण इस प्रकार है-

  1. आंकिक योग्यता
  2. वाचिक योग्यता
  3. स्थान सम्बंधी योग्यता
  4. स्मरण शक्ति योग्यता
  5. शब्द प्रवाह योग्यता
  6. तर्क शक्ति योग्यता

6. थॉमसन का प्रतिदर्श सिद्धान्त –

थॉमसन ने बुद्धि के प्रतिदर्श सिद्धान्त को प्रस्तुत किया। उनके मतानुसार व्यक्ति का प्रत्येक कार्य निश्चित योग्यताओं का प्रतिदर्श होता है। किसी भी विशेष कार्य को करने में व्यक्ति अपनी समस्त मानसिक योग्यताओं में से कुछ का प्रतिदर्श के रूप में चुनाव कर लेता है। इस सिद्धान्त में उन्होंने सामान्य कारकों की व्यावहारिकता को महत्व दिया है। थॉमसन के अनुसार व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतंत्र योग्यताओं पर निर्भर करता है परन्तु परीक्षा करते समय उनका प्रतिदर्श ही सामने आता है।

7. बर्ट तथा वर्नन का पदानुक्रमित बुद्धि सिद्धान्त –

बर्ट एवं वर्नन (1965) ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। बुद्धि सिद्धान्तों के क्षेत्र में यह नवीन सिद्धान्त माना जाता है। इस सिद्धान्त में बर्ट एवं वर्नन ने मानसिक योग्यताओं को क्रमिक महत्व प्रदान किया है। उन्होंने मानसिक योग्यताओं को दो स्तरों पर विभिक्त किया-

  1. सामान्य मानसिक योग्यता
  2. विशिष्ट मानसिक योग्यता

सामान्य मानसिक योग्यताओं में भी योग्यताओं को उन्होंने स्तरों के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया। पहले वर्ग में उन्होंने क्रियात्मक यांत्रिक दैशिक  एवं शारीरिक योग्यताओं को रखा है। इस मुख्य वर्ग को उन्होंने v.ed. नाम दिया। योग्यताओं के दूसरे समूह में उन्होंने शाब्दिक आंकिक तथा शैक्षिक योग्यताओं को रखा है और इस समूह को उन्होंने अण्मकण् नाम दिया है। अंतिम स्तर पर उन्होंने विशिष्ट मानसिक योग्यताओं को रखा जिनका सम्बंध विभिन्न ज्ञानात्मक क्रियाओं से है। इस सिद्धान्त की नवीनता एवं अपनी विशेष योग्यताओं के कारण कर्इ मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ है।

8. गिलफोर्ड का त्रि-आयाम बुद्धि सिद्धान्त –

गिलफोर्ड (1959, 1961, 1967) तथा उसके सहयोगियों ने तीन मानसिक योग्यताओं के आधार पर बुद्धि संरचना की व्याख्या प्रस्तुत की। गिलफोर्ड का यह बुद्धि संरचना सिद्धान्त त्रि-पक्षिय बौद्धिक मॉडल कहलाता है। उन्होंने बुद्धि कारकों को तीन श्रेणियों में बांटा है।

अर्थात् मानसिक योग्यताओं को तीन विमाओं में बांटा है। ये हैं-संक्रिया  विषय-वस्तु  तथा उत्पादन । कारक विश्लेषण  के द्वारा बुद्धि की ये तीनों विमाएं पर्याप्त रूप से भिन्न है। इन विमाओं में मानसिक योग्यताओं के जो-जो कारक आते हैं वे इस प्रकार हैं-

1. विषय वस्तु –  इस विधा में बुद्धि के जो विशेष कारक है वे विषय वस्तु के होते हैं। जैसे- आकृतिक सांकेतिक, शाब्दिक तथा व्यावहारिक। आकृतिक विषय वस्तु को दृष्टि द्वारा ही देखा जा सकता है तथा ये आकार और रंग-रूप के द्वारा निर्मित होती है। सांकेतिक विषय-वस्तु में संकेत, अंक तथा शब्द होते है जो विशेष पद्धति के रूप में व्यवस्थित होते हैं। शाब्दिक विषय-वस्तु में शब्दों का अर्थ या विचार होते हैं। व्यावहारिक विषय-वस्तु में व्यवहार संबंधी विषय निहित होते हैं।

2. उत्पादन – ये छ: प्रकार के माने गए हैं – (1)इकाइयां (2)वर्ग (3)सम्बंध (4)पद्धतियां (5)स्थानान्तरण तथा (6)अपादान।

3. संक्रिया – इस विमा में मानसिक योग्यताओं के पांच मुख्य समूह माने हैं। 1. संज्ञान 2. मूल्यांकन  3. अभिसारी चिंतन  4. अपसारी चिंतन

कैटल का बुद्धि सिद्धान्त –

रेमण्ड वी. केटल (1971) ने दो प्रकार की सामान्य बुद्धि का वर्णन किया है। ये हैं-फ्लूड तथा क्रिस्टेलाईज्ड उनके अनुसार बुद्धि की फ्लूड सामान्य योग्यता वंशानुक्रम कारकों पर निर्भर करती है जबकि क्रिस्टलाईज्ड योग्यता अर्जित कारकों के रूप में होती है। फ्लूड सामान्य योग्यता मुख्य रूप से संस्कृति युक्त, गति-स्थितियों तथा नई स्थितियों के अनुकूलता वाले परीक्षणों में पाई जाती है। क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता अर्जित सांस्कृतिक उपलब्धियों, कौशलताओं तथा नई स्थिति से सम्बंधित वाले परीक्षणों में एक कारक के रूप में मापी जाती है।

फ्लूड सामान्य योग्यता (gf) को शरीर की वंशानुक्रम विभक्ता के रूप में लिया जा सकता है। जो जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा संचालित होती है। जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य योग्यता (gc) सामाजिक अधिगम एवं पर्यावरण प्रभावों से संचालित होती है। केटल के अनुसार फ्लुड सामान्य बुद्धि वंषाानुक्रम से सम्बंधित है तथा जन्मजात होती है जबकि क्रिस्टेलाईज्ड सामान्य बुद्धि अर्जित है।

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