व्यक्तिगत सम्प्रेषण की निम्नलिखित विशेषताएँ होती है-
आत्मीयता- व्यक्तिगत सम्प्रेषण की एक प्रमुख विशेषता उसकी आत्मीयता है। इससे दो व्यक्तियों के बीच आत्मीयता बढ़ती है। दो व्यक्ति आपस में बातचीत कर एक दूसरे के निकट आते हैं, एक-दूसरे को जान पाते हैं और इस तरह एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं।
गोपनीयता- वैयक्तिक सम्प्रेषण की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता उसकी गोपनीयता है। दो व्यक्तियों के बीच हुई किसी भी विषय पर हुई बात केवल उन्हीं तक सीमित रह सकती है जब तक वे खुद किसी तीसरे व्यक्ति को न कहें। गोपनीयता का एक लाभ यह भी होता है कि इसमें किसी अन्य व्यक्ति का न तो हस्तक्षेप होता है और न ही प्रभाव। केवल दो व्यक्ति अपनी भावनाओं, विचारों आदि का आदान-प्रदान करते हैं।
वैयक्तिक सम्प्रेषण क्या है?
सम्प्रेषण की जिस प्रक्रिया में व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है उसे वैयक्तिक सम्प्रेषण कहते हैं। इसमें प्रेषक और प्रापक दोनों व्यक्ति होते हैं। वैयक्तिक सम्प्रेषण लिखित और मौखिक दोनों हो सकता है। वैयक्तिक सम्प्रेषण दो प्रकार का होता है- आत्मगत या अन्तःवैयक्तिक, और बाहयगत या अंतर्वैयक्तिक।
आत्मगत या अंतःवैयक्तिक सम्प्रेषण
आत्मगत सम्प्रेषण में एक व्यक्ति अपने आप से बात करता है अर्थात सम्प्रेषण की इस प्रक्रिया में एक ही व्यक्ति प्रेषक भी होता है और प्रापक भी होता है। यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति के मन में सम्पन्न होती है। आत्मगत सम्प्रेषण के अंतर्गत आत्म-चिंतन, भाव, विचार, अनुभव, आत्म-निरीक्षण, प्रार्थना, पूजा आदि मन के अंदर चलने वाली प्रक्रियाएं शामिल हैं। सम्प्रेषण की इस प्रक्रिया में प्रतिपुष्टि देने वाला कोई दूसरा नहीं होता। सम्प्रेषण की प्रक्रिया में आत्मगत सम्प्रेषण का भी बहुत महत्व है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपना परीक्षण करता है तथा बाह्य सम्प्रेषण से पहले यदि प्रेषक संदेश के बारे में आत्मगत सम्प्रेषण करता है तो वह ज्यादा अच्छी तरह अपने संदेश को प्रेषक तक पहुंचा पाता है। इससे सम्प्रेषण अधिक प्रभावी भी हो जाता है।
बाहयगत या अंतर्वैयक्तिक सम्प्रेषण
सम्प्रेषण की इस प्रक्रिया में एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से सम्प्रेषण करता है अर्थात इसमें प्रेषक और प्रापक अलग-अलग व्यक्ति होते हैं। दो व्यक्तियों के बीच की बातचीत को बाहयगत सम्प्रेषण के उदाहरण के रूप में माना जा सकता है। प्रेषक और प्रापक के बीच सम्प्रेषण की यह प्रक्रिया आमने-सामने भी हो सकती है व दूर रहकर टेलीफोन, कम्प्यूटर आदि संचार के अन्य माध्यमों से भी हो सकती है। बाहयगत सम्प्रेषण में दोनों व्यक्तियों के आपसी संबंध, उनके अपने व्यक्तित्व और उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। उदाहरण के लिए- माता-पिता का अपनी संतान के साथ, किसी व्यक्ति का अपने किसी संबंधी के साथ, गुरु का शिष्य के साथ, कार्यालय में कर्मचारी का अधिकारी के साथ बाहयगत सम्प्रेषण का स्वरूप अलग-अलग होता है।