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Soni in Pedagogy
Write the nature and characteristics of communication? सम्प्रेषण की प्रकृति एवं विशेषताएँ लिखिए, sampreshan kee prakrti evan visheshataen likhie ?

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Pavan

सम्प्रेषण की प्रकृति एवं विशेषताएँ

  1. Communication एक पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।
  2. इसमें ‘विचार-विमर्श’ तथा ‘विचार-विनिमय’ पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  3. यह द्विबाही (Two way) प्रक्रिया है अथ्रांत् इसमें दो पक्ष होते हैं । एक संदेश देने वाला तथा दूसरा संदेश ग्रहण करने वाला।
  4. Communication प्रक्रिया एक उद्देश्ययुक्त प्रक्रिया होती है।
  5. Communication में मनोवैज्ञानिक सामाजिक पक्ष (जैसे विचार, संवेदनायें, भावनायें तथा संवग) समावेशित होते है।
  6. प्रभावशाली Communication, उत्तम शिक्षण के लिये एक बुनियादी तत्व है।
  7. Communication प्रक्रिया में प्रत्यक्षीकरण (Purception) समावेशित होता है। (यदि संदेश प्राप्त करने वाला व्यक्ति, संदेश का सन्दर्भ सही हंग से प्रत्यक्षीकत नहीं कर पाता तो सही Communication सप्भव नहीं हैं।)
  8. Communication एवं सूचनाओं (Information) में अन्तर हैं। सूचनाओं में तर्क, औपचारिकता तथा Impersonality की विशेषतायें होती हैं; जैसे-पुस्तक एक सूचना है या टी. बी. पर प्रोग्राम सूचनाओं से भरे रहते हैं। लेकिन जब तक पुस्तक पढ़ी न जाये या टी. वी. खोला न जाये ( उसका on का बटन न दबाया जाये) तब तक Communication सम्भव नहीं है। सूचनायें बस्तुनिष्ठ (Objective) होती हैं जबकि सम्प्रेषण में व्यक्ति या व्यक्तियों के व्यक्तिगत प्रत्यक्षीकरण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
  9. Communication में सामान्यत: व्यक्ति उन्हीं चीजोंविचारों का प्रत्यक्षींकरण करते हैं, जिनकी उन्हें अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं, मूल्यों, प्रेरकों, परिस्थितियों या पृष्ठभूमि के अनुसार चाह (Expectation) या प्रत्याशा होती है।
  10. Communication मानवीय तथा सामाजिक वातावरण को बनाये (Maintain) रखने का कार्य करता है ।
  11. Communication के चार मुख्य कार्य हैं-
  • (a) सूचना प्रदान करना।
  • (b) निर्देश अथवा आदेश या संदेश प्रेषित (प्रसारित करना)।
  • (c) परस्पर विश्वास जाग्रत करना।
  • (d) समन्वय स्थापित करना।
  1. Communication की प्रक्रिया में परस्पर अन्त:क्रिया तथा पृष्टपोषण होना आवश्यक होता है।
  2. Communication में विचारों या सूचनाओं को मौखिक ( बोलकर), लिखित ( लिखकर) अथवा सांकेतिक (संकेतों) के रूप में प्रेपित किया जाता है एवं ग्रहण किया जाता है।
  3. Communication सदैव गत्यात्मक (Dynamic) प्रक्रिया होती है।

क्या आप जानते हैं “सम्प्रेषण एक गत्वात्मक, उद्देश्यपूर्ण, द्विध्रवीय (द्विवाही) प्रक्रिया हैं जिसमें सम्प्रेषण-सामग्री, सम्प्रेषण करने बाला तथा सम्प्रेषण ग्रहण करने वाला होता है। इसमें सूचनाओं तथधा विचारों का सम्प्रेषण एवं ग्रहण, लिखित, मौरिखक अरथवा संकेतों के माध्यम से होता है।” (कुलश्रेष्ठ, 1998)

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Azhar
Sampreshan ki Prakriti spasht kijiye

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