सम्प्रेषण की प्रकृति एवं विशेषताएँ
- Communication एक पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।
- इसमें ‘विचार-विमर्श’ तथा ‘विचार-विनिमय’ पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
- यह द्विबाही (Two way) प्रक्रिया है अथ्रांत् इसमें दो पक्ष होते हैं । एक संदेश देने वाला तथा दूसरा संदेश ग्रहण करने वाला।
- Communication प्रक्रिया एक उद्देश्ययुक्त प्रक्रिया होती है।
- Communication में मनोवैज्ञानिक सामाजिक पक्ष (जैसे विचार, संवेदनायें, भावनायें तथा संवग) समावेशित होते है।
- प्रभावशाली Communication, उत्तम शिक्षण के लिये एक बुनियादी तत्व है।
- Communication प्रक्रिया में प्रत्यक्षीकरण (Purception) समावेशित होता है। (यदि संदेश प्राप्त करने वाला व्यक्ति, संदेश का सन्दर्भ सही हंग से प्रत्यक्षीकत नहीं कर पाता तो सही Communication सप्भव नहीं हैं।)
- Communication एवं सूचनाओं (Information) में अन्तर हैं। सूचनाओं में तर्क, औपचारिकता तथा Impersonality की विशेषतायें होती हैं; जैसे-पुस्तक एक सूचना है या टी. बी. पर प्रोग्राम सूचनाओं से भरे रहते हैं। लेकिन जब तक पुस्तक पढ़ी न जाये या टी. वी. खोला न जाये ( उसका on का बटन न दबाया जाये) तब तक Communication सम्भव नहीं है। सूचनायें बस्तुनिष्ठ (Objective) होती हैं जबकि सम्प्रेषण में व्यक्ति या व्यक्तियों के व्यक्तिगत प्रत्यक्षीकरण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- Communication में सामान्यत: व्यक्ति उन्हीं चीजोंविचारों का प्रत्यक्षींकरण करते हैं, जिनकी उन्हें अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं, मूल्यों, प्रेरकों, परिस्थितियों या पृष्ठभूमि के अनुसार चाह (Expectation) या प्रत्याशा होती है।
- Communication मानवीय तथा सामाजिक वातावरण को बनाये (Maintain) रखने का कार्य करता है ।
- Communication के चार मुख्य कार्य हैं-
- (a) सूचना प्रदान करना।
- (b) निर्देश अथवा आदेश या संदेश प्रेषित (प्रसारित करना)।
- (c) परस्पर विश्वास जाग्रत करना।
- (d) समन्वय स्थापित करना।
- Communication की प्रक्रिया में परस्पर अन्त:क्रिया तथा पृष्टपोषण होना आवश्यक होता है।
- Communication में विचारों या सूचनाओं को मौखिक ( बोलकर), लिखित ( लिखकर) अथवा सांकेतिक (संकेतों) के रूप में प्रेपित किया जाता है एवं ग्रहण किया जाता है।
- Communication सदैव गत्यात्मक (Dynamic) प्रक्रिया होती है।
क्या आप जानते हैं “सम्प्रेषण एक गत्वात्मक, उद्देश्यपूर्ण, द्विध्रवीय (द्विवाही) प्रक्रिया हैं जिसमें सम्प्रेषण-सामग्री, सम्प्रेषण करने बाला तथा सम्प्रेषण ग्रहण करने वाला होता है। इसमें सूचनाओं तथधा विचारों का सम्प्रेषण एवं ग्रहण, लिखित, मौरिखक अरथवा संकेतों के माध्यम से होता है।” (कुलश्रेष्ठ, 1998)