विलेय तथा विलायक की प्रकृति
सामान्यतः एक ठोस रासायनिक रूप से समान द्रव में घुलता है। इसे इस प्रकार कह सकते हैं कि समान-समान को घोलता है (like dissolves like)। इससे स्पष्ट है कि NaCl जैसे आयनिक (ध्रुवीय) यौगिक जल जैसे ध्रुवीय विलायकों में घुल जाते हैं जबकि बेंजीन, ईथर आदि अध्रुवीय विलायकों में बहुत कम विलेय या लगभग अविलेय होते हैं। इसी प्रकार नैफ्थलीन, एन्थ्रासीन आदि अध्रुवीय (सहसंयोजक) यौगिक बेंजीन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, ईथर आदि अध्रुवीय (सहसंयोजक) विलायकों में आसानी से घुल जाते हैं जबकि ये जल जैसे ध्रुवीय विलायकों में बहुत कम घुलते हैं।
यही कारण है कि साधारण नमक (सोडियम क्लोराइड) चीनी की तुलना में जल में अधिक विलेय होता है। उनकी जल में विलेयताएँ क्रमश: 5.3 मोल प्रति लीटर तथा 3.8 मोल प्रति लीटर हैं।
ताप– किसी विलायक में एक ठोस की विलेयता पर ताप का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि घुलन प्रक्रिया ऊष्माक्षेपी (exothermic) है अथवा ऊष्माशोषी (endothermic)। इसे आसानी से लाशातेलिए सिद्धान्त (Le-Chatelier’s principle) के आधार पर निम्न प्रकार से समझा जा सकता है –
(i) जब कोई पदार्थ ऊष्मा अवशोषण के साथ घुलता है तो ताप में वृद्धि करने पर उसकी विलेयता में सतत् वृद्धि होती है। माना कि एक पदार्थ AB जल में निम्न साम्य स्थापित करता है –
AB(s) + aq AB (aq) + ऊष्मा
ला-शातेलिए सिद्धान्त के अनुसार, ताप में वृद्धि करने पर साम्य दाईं ओर विस्थापित हो जाता है। और इस प्रकार ताप में वृद्धि करने पर पदार्थ की विलेयता में वृद्धि हो जाती है।
NaNO3 KNO3 NaCl, KCl आदि ऐसे पदार्थों के उदाहरण हैं।
(ii) जब कोई पदार्थ ऊष्मा उत्सर्जन के साथ घुलित होता है तो ताप में वृद्धि होने पर उसकी विलेयता निरन्तर घटती है। माना कि एक पदार्थ AB जल में निम्न साम्य स्थापित करता है –
AB(s) + aq AB (aq) – ऊष्मा
ला-शातेलिए सिद्धान्त के अनुसार, ताप में वृद्धि करने पर साम्य को उस दिशा में विस्थापित होना चाहिए जिस दिशा में यह उत्पन्न ऊष्मा के प्रभाव को समाप्त कर सके। स्पष्ट है कि ताप में वृद्धि करने पर साम्य बायीं ओर विस्थापित होगा और पदार्थ की विलेयता कम हो जाएगी। सीरियम सल्फेट, लीथियम कार्बोनेट, सोडियम काबॉनेट मोनोहाइड्रेट ऐसे पदार्थों के उदाहरण हैं।
उपरोक्त पदार्थों (जिनकी विलेयता ताप वृद्धि के साथ निरन्तर घटती या बढ़ती है) के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार के पदार्थ भी ज्ञात हैं। इनकी विलेयता ताप वृद्धि के साथ निरन्तर घटती या बढ़ती नहीं है। ये पदार्थ एक निश्चित ताप पर अपने एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। यह तापे संक्रमण ताप (transition temperature) कहलाता है। रूपों में यह परिवर्तन एक बहुरूपी रूप से दूसरे बहुरूपी रूप में (अमोनियम नाइट्रेट का से 8 रूप में) अथवा एक जलयोजित रूप से दूसरे जलयोजित रूप में (CaCl2.6H2O → CaCl2 . 4H2O) अथवा जलयोजित रूप से अनार्द्र रूप में (Na2SO4 . 10H2O → Na2SO4) हो सकता है। रूपों में इस प्रकार के परिवर्तन के कारण ही सोडियम सल्फेट की विलेयता पहले 32.4°C तक बढ़ती है और उसके पश्चात् घटने लगती है।