सन् 1943 में प्रकाशित ‘तारसप्तक’ की कविताओं में नये बिम्ब-विधानों, नये अलंकारों और नयी भावाभिव्यक्ति को अपनाया गया। काव्य की इसी नयी विधा को ‘प्रयोगवादी काव्य’ के नाम से अभिहित किया गया। नयी कविता इस प्रयोगवादी कविता का ही विकसित रूप है।
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