महासागरीय धाराएँ अपने स्वभाव के अनुसार तटवर्ती भागों की जलवायु मत्स्याखेट तथा व्यापार को प्रभावित करती हैं
1. जलवायु पर प्रभाव- ठण्डी धाराएँ तटवर्ती भागों की जलवायु को शुष्क बना देती हैं, क्योंकि इनके ऊपर से बहकर आने वाली पवनें शुष्क तथा शीतल होती हैं, जो वर्षा नहीं करा पातीं। यही कारण है कि बेग्युला की धारा, पीरू की धारा, कनारी की धारा, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की धारा तथा कैलीफोर्निया की धारा के तटवर्ती भागों की जलवायु शुष्क मरुस्थली होती है। विश्व के विशाल
मरुस्थल इन्हीं धाराओं के कारण उष्ण तथा शुष्क हैं।
2. मत्स्याखेट पर प्रभाव-जहाँ गर्म तथा ठण्डी धाराएँ परस्पर मिलती हैं वहाँ सघन कोहरा पैदा होता है। यह दशा मछलियों के विकास के लिए उत्तम होती है तथा वहाँ मछली पकड़ने का कार्य बड़े पैमाने पर होता है। जापान के निकट गर्म क्यूरोसिवो तथा ठण्डी ओयाशियो की धारा और न्यूफाउण्डलैण्ड के निकट गर्म गल्फस्ट्रीम और ठण्डी लैब्रेडोर धाराओं के मिलने से यही दशा पैदा
होती है। ये क्षेत्र मत्स्याखेट के लिए उत्तम हैं।
3. व्यापार पर प्रभाव-उत्तरी गोलार्द्ध में उच्च अक्षांशों में जहाँ तटों के निकट गर्म धाराएँ बहती हैं, वे तट शीतकाल में भी हिमाच्छादित नहीं होते; अत: व्यापार के लिए खुले रहते हैं। उदाहरणार्थ-पश्चिमी यूरोप के तट गर्म उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट के कारण व्यापार के लिए वर्ष-भर खुले रहते हैं, जबकि उन्हीं अक्षांशों में स्थित साइबेरिया (रूस) के पूर्वी तट शीतकाल में जम जाते हैं।