भारत की भौगोलिक स्थिति की अमिट छाप इसके समग्र प्रतिरूप पर पाई जाती है। चाहे जलवायु की बात हो या व्यापार की, उद्योग की बात हो या कृषि की, राजनीति की बात हो या धर्म की; सभी क्षेत्रों में इसकी भौगोलिक स्थिति का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है
1. भौगोलिक स्थिति का जलवायु पर प्रभाव
हिन्द महासागर में भारत का प्रायद्वीपीय भाग लगभग 1,600 किमी तक प्रवेश कर गया है, जिसके कारण अरब सागर और बंगाल की खाड़ी अपना समकारी प्रभाव सम्पूर्ण प्रायद्वीपीय भारत की जलवायु पर डालते हैं और उत्तरी भारत की जलवायु को भी प्रभावित करते हैं। हिन्द महासागर और हिमालय पर्वत का ही प्रभाव है कि भारत का लगभग दो-तिहाई भाग उपोष्ण कटिबन्ध में स्थित होते हुए भी भारत उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी जलवायु का देश कहलाता है। हिमालय पर्वत भारत की जाड़ों में उत्तर से आने वाली अत्यन्त शीतल एवं बर्फीली पवनों से रक्षा करता है और गर्मियों में मानसूनी पवनों को रोककर पर्वतीय ढालों पर वर्षा कराता है।
2. हिन्द महासागर का व्यापार पर प्रभाव
हिन्द महासागर ने न केवल भारत की जलवायु को ही प्रभावित किया है, वरन् तटीय व विदेशी व्यापार को भी प्रभावित किया है। हिन्द महासागर को तीन । महाद्वीप-अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया-घेरे हुए हैं तथा इसके तटों पर संसार की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या निवास करती है। इस महासागर के शीर्ष पर स्थित होने से भारत इस जनसंख्या से सीधा व्यापारिक सम्पर्क कर सकता है। हिन्द महासागर से होकर संसार का प्रसिद्ध समुद्री मार्ग स्वेज नहर गुजरता है, जिसका लाभ भारत को ठीक उसी प्रकार प्राप्त है जैसे कोई नगर किसी व्यस्त सड़क मार्ग का लाभ उठाता है। स्वेज नहर मार्ग द्वारा भारत पश्चिम में यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों से जुड़ा है। इसी प्रकार पूरबे में मलक्का जलडमरूमध्य द्वारा यह
जापान, चीन, दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों और ऑस्ट्रेलिया से जुड़ा है।