in भूगोल
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मृदा-निर्माण के कारक बताइए तथा इनके संयुक्त प्रभाव का वर्णन कीजिए।

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मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्त्वों का समुच्चय है जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधों का पोषित करने की क्षमता होती है। इसके निर्माण में निम्नलिखित पाँच मूल कारकों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है(1) जलवायु, (2) मूल पदार्थ (शैल/चट्टान), (3) स्थलाकृति, (4) जैविक क्रियाएँ एवं (5) कालावधि वास्तव में मृदा-निर्माण में प्रयुक्त कारक एकाकी रूप से सक्रिय नहीं होते हैं, बल्कि ये कारक संयुक्त रूप से कार्यरत रहते हैं एवं एक-दूसरे के कार्य को प्रभावित करते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण अधोलिखित है

1. जलवायु-मृदा-निर्माण में जलवायु सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण सक्रिय कारक हैं। मृदा के निर्माण एवं विकास में जलवायु के निम्नलिखित कारक प्रमुख रूप से योगदान देते हैं-

  1. प्रवणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारम्बारता,
  2. आर्द्रता अवधि,
  3. तापक्रम में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता।

2. मूल पदार्थ अथवा चट्टान-मृदा-निर्माण में चट्टान अथवा मूल पदार्थ निष्क्रिय किन्तु महत्त्वपूर्ण नियन्त्रक कारक है। मृदा-निर्माण गठन, संरचना शैल निक्षेप के खनिज एवं रासायनिक संयोजन पर निर्भर होते हैं।

3. स्थलाकृति या उच्चावच-स्थलाकृति या उच्चावच भी मृदा-निर्माण का निष्क्रिय कारक है। इस कारक में मृदा-निर्माण और विकास पर ढाल का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। तीव्र ढालों पर मृदा | छिछली तथा सपाट, उच्च क्षेत्रों में गहरी या मोटी होती है। निम्न ढालों पर जहाँ अपरदन मन्द तथा जल का परिश्रवण अच्छा रहता है, वहाँ मृदा-निर्माण बहुत अनुकूल होता है।

4. जैविक क्रियाएँ-जैविक क्रियाएँ मृदा के विकास में महत्त्वपूर्ण होती हैं। वनस्पति आवरण एवं जीव के मूल पदार्थों में विद्यमान रहने पर ही मिट्टी में नमी धारण क्षमता तथा नाइट्रोजन एवं जैविक अम्ल मृदा को उर्वरकता प्रदान करते हैं। जलवायु इन सभी तत्त्वों को नियन्त्रित करती है। इसी से जैविक तत्त्व सक्रिय होकर मूल पदार्थों में विनियोजित होते हैं।

5. कालावधि-मृदा-निर्माण प्रक्रिया उपर्युक्त कारकों के संयोग से लम्बी अवधि में सम्पन्न होती है। कालावधि जितनी लम्बी होती है मृदा उतनी ही परिपक्वता ग्रहण करती है और मृदा की पाश्विका (Profile) का विकास होता है। कम समय में निक्षेपित मूल पदार्थ में मृदा-निर्माण में कार्यरत कारक अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाते: अत: मृदा तरुण या युवा होती है। इसमें संस्तर का अभाव होता है। अत: मृदा-निर्माण एवं विकास हेतु पर्याप्त कालावधि एवं अनिवार्य व आवश्यक कारक है।

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