पृथ्वी पर जीवों के उद्भव एवं विकास में करोड़ों वर्ष लगे हैं। विभिन्न पारिस्थितिक तन्त्र भाँति-भाँति के जीव-जन्तुओं एवं पादपों के प्राकृतिक आवास बने। कालान्तर में मानवजनित एवं प्राकृतिक कारणों से अनेक जीवों की जातियाँ धीरे-धीरे लुप्त होने लगीं। वर्तमान में पौधों एवं प्राणी जातियों के विलोपन की दर बढ़ गई। इससे पृथ्वी की जैव-विविधता को खतरा उत्पन्न हो गया।
भू-पृष्ठ पर जैव-विविधता में ह्रास के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं
1. आवासों का निवास-वन एवं प्राकृतिक घास स्थल अनेक जीवों के प्राकृतिक आवास होते हैं, किन्तु जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि एवं मानव आवास के लिए भूमि आपूर्ति को पूरा करने के लिए जैव-विविधता क्षेत्र का विनाश किया गया है।
2. वन्य जीवों का अवैध शिकार-मानव ने उत्पत्ति काल से ही वन्य जीवों का शिकार प्रारम्भ कर दिया था, किन्तु तब यह सीमित मात्रा में था। वर्तमान में मनोरंजन के अतिरिक्त अवैध धन कमाने (तस्करी) के लिए जैव-विविधता का बड़ी बेहरमी से शोषण किया जा रहा है।
3. मानव-वन्यप्राणी द्वन्द्व-मानव जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण भोजन और आवास की माँग बढ़ी है। इसीलिए जीवों एवं पादप आवास स्थलों पर अतिक्रमण में वृद्धि हुई है। विभिन्न आर्थिक
लाभों के लिए भी मानव-वन्य प्राणी द्वन्द्व चरम पर है।
4. प्राकृतिक आपदाएँ-ऐसी अनेक प्राकृतिक आपदाएँ हैं जिनके कारण जैव-विविधता का ह्रास बड़ी मात्रा में होता है। अकाल, महामारी, दावानल, बाढ़, सूखा, तूफान; भू-स्खलन, भूकम्प आदि के कारण वनस्पति एवं प्राणियों का व्यापक विनाश हुआ है। उपर्युक्त के अतिरिक्त आणविक हथियारों का प्रयोग, औद्योगिक दुर्घटनाएँ समुद्रों में तेल रिसाव, हानिकारक अपशिष्ट उत्सर्जन आदि भी ऐसे कारक हैं जिनके कारण जैव-विविधता ह्रास में वृद्धि हुई है।
रोकने के उपाय-जैव-विविधता ह्रास या विनाश को रोकने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं
- जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण,
- वनारोपण में वृद्धि
- मृदा अपरदन को रोकना,
- कीटनाशकों के प्रयोग पर नियन्त्रण,
- विभिन्न प्रकार के प्रदूषण पर नियन्त्रण,
- वन्य प्राणियों के शिकार पर कठोर प्रतिबन्ध,
- संकटापन्न प्रजातियों का संरक्षण,
- वन्य-जीव एवं वनस्पति के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर रोक।