Welcome to the Hindi Tutor QA. Create an account or login for asking a question and writing an answer.
Pratham Singh in भूगोल
अपरदन के मुख्य कारकों का विवरण दीजिए।

1 Answer

0 votes
Deva yadav

अपरदन के कारक

शैलों के अपरदन में गतिशील साधनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इन कारकों में बहता हुआ जल या नदी, हिमानी, पवन, सागरीय तरंगें तथा भूमिगत जल महत्त्वपूर्ण हैं। इन सभी कारकों में जल का कार्य सार्वत्रिक या सबसे व्यापक है। जल का कार्य आर्द्र क्षेत्रों में, पवन का कार्य शुष्क क्षेत्रों में, हिमानी का कार्य हिमाच्छादित क्षेत्रों में, भूमिगत जल का कार्य चूने की शैलों के क्षेत्रों में तथा लहरों का कार्य सागर तटों पर होता है। इन कारकों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है–

1. नदी या प्रवाही जल-अपरदन के कारकों में नदी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। नदियाँ प्रायः पर्वतों से निकलकर समुद्र में गिरती हैं। ये अपने पर्वतीय, मैदानी तथा डेल्टाई खण्ड में अपरदन तथा निक्षेप कार्य करती हैं जिससे अनेक प्रकार की आकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। नदियाँ अपनी घाटी का भी क्रमशः विकास करती हैं। पर्वतीय खण्ड में नदी की घाटी सँकरी तथा गहरी होती है जिसे गार्ज कहते हैं। इसकी आकृति अंग्रेजी के ‘V’ आकार की होती है। क्रमशः नदी अपनी घाटी को चौड़ा करती है। अन्त में डेल्टा बनाकर यह समुद्र में गिरती है।

2. हिमानी या हिमनद-हिमानियाँ या हिमनद हिमाच्छादित या उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं। हिमनद हिम की नदी होती है जो पर्वतीय ढालों पर धीरे-धीरे सरकती है। इसकी गति तो मन्द होती है किन्तु इसमें अपरदन की अपार क्षमता होती है। यह अनेक प्रकार की अपरदनात्मक तथा निक्षेपणात्मक आकृतियाँ बनाती है। हिमरेखा के नीचे हिमानी का अन्त हो जाता है।

3. वायु या पवन-वायु का कार्य प्रायः मरुस्थलों में होता है जहाँ यह वनस्पति तथा अन्य किसी भौतिक बाधा के अभाव में निर्बाध रूप से बहती है। वायु का कार्य अधिक ऊँचाई पर न होकर धरातल के निकट होता है। यह चट्टानों को खरोंचकर या अपघर्षण करके अनेक प्रकार की आकृतियों का निर्माण करती है। धरातल की रेत को उड़ाकर उसे अन्यत्र जमा कर देती है जिससे
अनेक प्रकार की निक्षेपणात्मक आकृतियाँ बन जाती हैं।

4. सागरीय तरंगें-तरंगें या लहरें सागर तट पर सदैव प्रहार करती रहती हैं, जिससे सागर तट की चट्टानें क्रमशः ढीली पड़ती हैं तथा फिर टूट जाती हैं। यह शैल पदार्थ लहरों द्वारा सागर में बहा दिया जाता है। कुछ पदार्थ सागर तट पर या सागर से कुछ दूर जमा कर दिया जाता है। इस प्रकार लहरों के कार्य से अनेक प्रकार की अपरदनात्मक तथा निक्षेपात्मक आकृतियाँ बनती हैं।

5. भूमिगत जल-वर्षा का जल धरातले से रिसकर क्रमशः भूमि में चट्टानों के नीचे एकत्रित रहता है। यह जल हमें कुओं, ट्यूबवैल, पातालतोड़ कुओं तथा अन्य रूपों में उपलब्ध होता है। भूमिगत जल में नदी की भाँति प्रवाह नहीं होता है; अत: यह अपरदन का कार्य अधिकांशतः घुलन क्रिया द्वारा करता है। इस क्रिया से भूमि के नीचे अनेक प्रकार की आकृतियाँ बन जाती हैं। भूमिगत जल का कार्य चूना-पत्थर जैसी घुलनशील शैलों के क्षेत्र में अधिक व्यापक रूप से होता है। इस जल के साथ चूने के ढेर भी चट्टानों के फर्श तथा छतों पर एकत्रित हो जाते हैं जिनसे अनेक प्रकार की निक्षेपणात्मक आकृतियाँ बन जाती हैं।

Related questions

Follow Us

Stay updated via social channels

Twitter Facebook Instagram Pinterest LinkedIn
...