ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम
किसी ऊष्मागतिक निकाय की दो निश्चित अवस्थाओं के बीच विभिन्न प्रक्रमों में राशि (Q – w) का मान निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन के बराबर होता है। इसलिए यदि निकाय की प्रारम्भिक तथा अन्तिम अवस्थाओं में आन्तरिक ऊर्जाएँ क्रमशः Ui तथा Uf हों, तो
Q – W = UF – Ui अथवा (Q – W) = ∆U
(जहाँ ∆U निकाय की प्रारम्भिक तथा अन्तिम अवस्थाओं में आन्तरिक ऊर्जाओं का अन्तर है।) अथवा Q = ∆U + W ……(1)
यह ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम को गणितीय स्वरूप है। इसको शब्दों में निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है –
“किसी ऊष्मागतिक निकाय को दी गयी ऊष्मा Q (अर्थात् निकाय द्वारा अवशोषित ऊष्मा) दो भागों में प्रयुक्त होती है – (i) निकाय द्वारा बाह्य दाब के विरुद्ध कार्य (w) करने में तथा (ii) निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन (∆U) करने में।”
यदि किसी प्रक्रम में निकाय को अनन्त सूक्ष्म ऊर्जा dQ दी जाती है तथा निकाय द्वारा अनन्त सूक्ष्म कार्य dw किया जाता है, तो निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन भी अनन्त सूक्ष्म dU ही होगा। तब समीकरण (1) को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जायेगा –
dQ = dU+ dW …..(2)
इस प्रकार ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम का ही एक रूप है।