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Sarthak yadav in सामान्य हिन्दी
इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के बारे में बताओ |

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Sarthak yadav
सन् 1942 से 1947 तक का समय स्वतंत्रता-आंदोलन का समय था। इन दिनों पूरे देश में देशभक्ति का ज्वार पूरे यौवन पर था। हर नगर में हड़तालें हो रही थीं। प्रभात-फेरियाँ हो रही थीं। जलसे हो रहे थे। जुलूस निकाले जा रहे थे। युवक-युवतियाँ सड़कों पर घूम-घूमकर नारे लगा रहे थे। सारी मर्यादाएँ टूट रही थीं। घर के बंधन, स्कूल-कॉलेज के नियम-सबकी धज्जियाँ उड़ रही थीं। लड़कियाँ भी लड़कों के बीच खुलकर सामने आ रही थीं। ऐसे वातावरण में लेखिका मन्नू भंडारी ने अपूर्व उत्साह दिखाया। उसने पिता की इच्छा के विरुद्ध सड़कों पर घूम-घूमकर नारेबाजी की, भाषण दिए, हड्तालें कीं, जलसे-जुलूस किए। उसके इशारे पर पूरा कॉलेज कक्षाएँ छोड़कर आंदोलन में साथ हो लेता था। म कह सकते हैं कि वे स्वतंत्रता सेनानी थीं।

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