बहुत दिनों तक मनुष्य ने सामाजिक घटनाओं की व्याख्या, पारलौकिक शक्तियों, कोरी कल्पनाओं और तर्क-वाक्यों के श्कारगत सत्यों के आधार पर की है।
सामाजिक अनुसंधान का बीजारोपण वहीं से होता है जहाँ वह अपनी व्याख्या के संबंध में संदेह प्रकट करना प्रारंभ करता है। अनुसंधान की जो विधियाँ प्राकृतिक विज्ञानों में सफल हुई है, उन्हीं के प्रयोग द्वारा सामाजिक घटनाओं की समझ उत्पन्न करना, घटनाओं में कारणता स्थापित करना और वैज्ञानिक तटस्थता बनाए रखना, सामाजिक अनुसंधान की मुख्य लक्षण हैं। ऐसी व्याख्या नहीं प्रस्तुत करनी है जो केवल अनुसंधानकर्ता को संतुष्ट करे, बल्कि ऐसी व्याख्या प्रस्तुत करनी होती है जो आलोचनात्मक दृष्टि वालों या विरोधियों का संदेह दूर कर सके।
इसके लिए निरीक्षण की व्यवस्थित करना, तथ्य संकलन और तथ्य-निर्वचन के लिए विशिष्ट उपकरणों का प्रयोग करना और प्रयोग में आने वाले प्रत्ययों (Variables) को स्पष्ट करना आवश्यक है।
सामाजिक अनुसंधान एक शृंखलाबद्ध प्रक्रिया है जिसके मुख्य चरण हैं-
- समस्या के क्षेत्र का चुनाव।
- प्रचलित सिद्धांतों और ज्ञान से परिचय।
- अनुसंधानों की समस्या को परिभाषित करना और आवश्यकतानुसार प्रकल्पना का निर्माण करना।
- आँकड़ा संकलन की उपयुक्यों का चुनाव, आँकड़ों का निर्वचन (अर्थ लगाना) और प्रदर्शन करना।
- सामान्यीकरण और निर्ष्कष निकालना।
अनुसंधानप्रक्रिया की पूर्वयोजना शोध प्रारूप (research design) में तैयार कर ली जाती है।