द्वितीय विश्व युद्ध के कारण
वर्साय की अपमानजनक संधि
द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज वर्साय की संधि मे ही बो दिए गए थे. मित्र राष्ट्रों ने जिस प्रकार का अपमानजनक व्यवहार जर्मनी के साथ किया उसे जर्मन जनमानस कभी भी भूल नहीं सका. जर्मनी को इस संधि पर हस्ताक्षर करने को विवश कर दिया गया. संधि की शर्तों के अनुसार जर्मन साम्राज्य का एक बड़ा भाग मित्र राष्ट्रों ने उस से छीन कर आपस में बांट लिया. उसे सैनिक और आर्थिक दृष्टि से पंगु बना दिया गया. अतः जर्मन वर्साय की संधि को एक राष्ट्रीय कलंक मानते थे. मित्र राष्ट्रों के प्रति उनमें प्रबल प्रतिशोध की भावना जगी. हिटलर ने इस मनोभावना को और अधिक उभारकर सत्ता हथिया ली. सत्ता में आते ही उसने वर्साय की संधि की धज्जियां उड़ा दी और घोर आक्रामक नीति अपना कर दूसरा विश्व युद्ध आरंभ कर दिया.
तानाशाही शक्तियों का उदय
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में तानाशाही शक्तियों का उदय और विकास हुआ. इटली में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर तानाशाह बन बैठे. प्रथम विश्वयुद्ध में इटली मित्र राष्ट्रों की ओर से लड़ा था परंतु पेरिस शांति सम्मेलन में उसे कोई खास लाभ नहीं हुआ. इससे इटली में असंतोष की भावना जगी इसका लाभ उठा कर मुसोलिनी ने फासीवाद की स्थापना कर सारी शक्तियां अपने हाथों में केंद्रित कर ली. वह इटली का अधिनायक बन गया. यही स्थिति जर्मनी में भी थी. हिटलर ने नाजीवाद की स्थापना की तथा जर्मनी का तानाशाह बन बैठा. मुसोलिनी और हिटलर दोनों ने आक्रामक नीति अपनाई दोनों ने राष्ट्र संघ की सदस्यता त्याग दी तथा अपनी शक्ति बढ़ाने में लग गए. उनकी नीतियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध को अवश्यंभावी बना दिया.
साम्राज्यवादी प्रवृत्ति
द्वितीय विश्वयुद्ध का एक प्रमुख कारण बना साम्राज्यवाद. प्रत्येक साम्राज्यवादी शक्ति अपने साम्राज्य का विस्तार कर अपनी शक्ति और धन में वृद्धि करना चाहता था. इससे साम्राज्यवादी राष्ट्र में प्रतिस्पर्धा आरंभ हुई. 1930 के दशक में इस मनोवृति में वृद्धि हुई. आक्रामक कार्यवाहियां बढ़ गई. 1931 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर मंचूरिया पर अधिकार कर लिया. इसी प्रकार 1935 में इटली ने इथोपिया पर कब्जा जमा लिया. 1935 में जर्मनी ने राइनलैंड पर तथा 1938 में ऑस्ट्रिया पर विजय प्राप्त कर उसे जर्मन साम्राज्य में मिला लिया. स्पेन में गृहयुद्ध के दौरान हिटलर और मुसोलिनी ने जनरल फ्रैंको को सैनिक सहायता पहुंचाई. फ्रैंको ने स्पेन में सत्ता हथिया ली.
यूरोपीय गुटबंदी
जर्मनी की बढती शक्ति से आशंकित होकर यूरोपीय राष्ट्र अपनी सुरक्षा के लिए गुटों का निर्माण करने लगे. इसकी पहल फ्रांस ने की. उसने जर्मनी के इर्द-गिर्द के राष्ट्रों का एक जर्मन विरोधी गुट बनाया. इसके प्रत्युत्तर में जर्मनी और इटली ने एक अलग गुट बनाया. जापान भी इस में सम्मिलित हो गया. इस प्रकार जर्मनी इटली और जापान का त्रिगुट बना. यह राष्ट्र धुरी राष्ट्र के नाम से विख्यात हुए. फ्रांस इंग्लैंड अमेरिका और सोवियत संघ का अलग ग्रुप बना जो मित्र राष्ट्र के नाम से जाना गया यूरोपीय राष्ट्रों की गुटबंदी ने एक दूसरे के विरुद्ध आशंका घृणा और विद्वेष की भावना जगा दी.
हथियार बंदी की होड़
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात निरस्त्रीकरण के लिए काफी प्रयास किए गए परंतु यह प्रयास विफल रहा. साम्राज्यवादी प्रतिद्वंदिता और राष्ट्र ग्रुप के निर्माण ने पुनः हथियार बंदी की होड आरंभ कर दी. जर्मनी और फ्रांस इस दिशा में सबसे आगे बढ़ गए. 1932 में जिनेवा निरस्त्रीकरण सम्मेलन आयोजित किया गया परंतु यह सफल नहीं हो सका. 1933 तक संपूर्ण यूरोप में सामरिक वातावरण व्याप्त गया. फ्रांस ने अपनी सीमा पर मैगिनो लाइन का निर्माण किया और जमीन के भीतर मजबूत किलाबंदी दी कि जिससे कि जर्मन आक्रमण को फ्रांस की सीमा पर ही रोका जा सके. इसके जवाब में जर्मनी ने अपनी पश्चिमी सीमा को सुदृढ़ करने के लिए सीजफ्रेड लाइन बनाई. इन सैनिक गतिविधियों ने युद्ध को अवश्यंभावी बना दिया.