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Pratham Singh in इतिहास
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प्रथम विश्वयुद्ध के कारणों का उल्लेख कीजिए

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Deva yadav
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प्रथम विश्व युद्ध के कारण

युरोपीय शक्तिसंतुलन का बिगड़ना-

1871 में जर्मनी के एकीकरण के पूर्व युरोपीय राजनीती में जर्मनी की महत्वपूर्ण भूमिका नहीं थी, परन्तु बिस्मार्क के नेतृत्व में एक शक्तिशाली जर्मन राष्ट्र का उदय हुआ. इससे युरोपीय शक्ति – संतुलन गड़बड़ा गया. इंग्लैंड और फ्रांस के लिए जर्मनी एक चुनौती बन गया. इससे युरोपीय राष्ट्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ी.

गुप्त संधिया एवं गुटों का निर्माण-

जर्मनी के एकीकरण के पश्चात वहां के चांसलर बिस्मार्क ने अपने देश को युरोपीय राजनीती में प्रभावशाली बनाने के लिए तथा फ्रांस को यूरोप की राजनीती में मित्रविहीन बनाए रखने के लिए गुप्त संधियों की नीतियाँ अपनायीं. उसने ऑस्ट्रिया- हंगरी (1879) के साथ द्वैत संधि (Dual Alliance) की. रूस (1881 और 1887) के साथ भी मैत्री संधि की गयी. इंग्लैंड के साथ भी बिस्मार्क ने मैत्रीवत सम्बन्ध बनाये. 1882 में उसने इटली और ऑस्ट्रिया के साथ मैत्री संधि की. फलस्वरूप , यूरोप में एक नए गुट का निर्माण हुआ जिसे त्रिगुट संधि (Triple Alliance) कहा जाता है. इसमें जर्मनी , ऑस्ट्रिया- हंगरी एवं इटली सम्मिलित थे. इंगलैंड और फ्रांस इस गुट से अलग रहे

जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता-

जर्मनी एवं फ्रांस के मध्य पुरानी दुश्मनी थी. जर्मनी के एकीकरण के दौरान बिस्मार्क ने फ्रांस के धनी प्रदेश अल्सेस- लौरेन पर अधिकार कर लिया था. मोरक्को में भी फ़्रांसिसी हितो को क्षति पहुचाई गयी थी. इसलीये फ्रांस का जनमत जर्मनी के विरुद्ध था. फ्रांस सदैव जर्मनी को नीचा दिखलाने के प्रयास में लगा रहता था. दूसरी ओर जर्मनी भी फ्रांस को शक्तिहीन बनाये रखना चाहता था. इसलिए जर्मनी ने फ्रांस को मित्रविहीन बनाये रखने के लिए त्रिगुट समझौते किया| बदले में फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध अपने सहयोगी राष्ट्रों का गुट बना लिया. प्रथम विश्वयुद्ध के समय तक जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता इतनी बढ़ गयी की इसने युद्ध को अवश्यम्भावी बना दिया.

जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता-

जर्मनी एवं फ्रांस के मध्य पुरानी दुश्मनी थी. जर्मनी के एकीकरण के दौरान बिस्मार्क ने फ्रांस के धनी प्रदेश अल्सेस- लौरेन पर अधिकार कर लिया था. मोरक्को में भी फ़्रांसिसी हितो को क्षति पहुचाई गयी थी. इसलीये फ्रांस का जनमत जर्मनी के विरुद्ध था. फ्रांस सदैव जर्मनी को नीचा दिखलाने के प्रयास में लगा रहता था. दूसरी ओर जर्मनी भी फ्रांस को शक्तिहीन बनाये रखना चाहता था. इसलिए जर्मनी ने फ्रांस को मित्रविहीन बनाये रखने के लिए त्रिगुट समझौते किया| बदले में फ्रांस ने भी जर्मनी के विरुद्ध अपने सहयोगी राष्ट्रों का गुट बना लिया. प्रथम विश्वयुद्ध के समय तक जर्मनी और फ्रांस की शत्रुता इतनी बढ़ गयी की इसने युद्ध को अवश्यम्भावी बना दिया.

साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा

साम्राज्यवादी देशों का साम्राज्य विस्तार के लिए आपसी प्रतिद्वंदिता एवं हितों की टकराहट प्रथम विश्वयुद्ध का मूल कारण माना जा सकता है.

औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कल-कारखानों को चलाने के लिए कच्चा माल एवं कारखानों में उत्पादित वस्तुओं की खपत के लिए बाजार की आवश्यकता पड़ी. फलस्वरुप साम्राज्यवादी शक्तियों इंग्लैंड फ्रांस और रूस ने एशिया और अफ्रीका में अपने-अपने उपनिवेश बनाकर उन पर अधिकार कर लिए थे.

जर्मनी और इटली जब बाद में उपनिवेशवादी दौड़ में सम्मिलित हुए तो उन के विस्तार के लिए बहुत कम संभावना थी. अतः इन देशों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति अपनाई. यह नीति थी दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति सुदृढ़ करने की.

प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने के पूर्व तक जर्मनी की आर्थिक एवं औद्योगिक स्थिति अत्यंत सुदृढ़ हो चुकी थी. अतः जर्मन सम्राट धरती पर और सूर्य के नीचे जर्मनी को समुचित स्थान दिलाने के लिए व्यग्र हो उठा. उसकी थल सेना तो मजबूत थी ही अब वह एक मजबूत जहाजी बेड़ा का निर्माण कर अपने साम्राज्य का विकास तथा इंग्लैंड के समुद्र पर स्वामित्व को चुनौती देने के प्रयास में लग गया.

1911 में आंग्ल जर्मन नाविक प्रतिस्पर्धा के परिणाम स्वरुप अगादिर का संकट उत्पन्न हो गया. इसे सुलझाने का प्रयास किया गया परंतु यह विफल हो गया. 1912 में जर्मनी में एक विशाल जहाज इमपरेटर बनाया गया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज था.फलतः जर्मनी और इंग्लैंड में वैमनस्य एवं प्रतिस्पर्धा बढ़ गई.

इसी प्रकार मोरक्को तथा बोस्निया संकट ने इंग्लैंड और जर्मनी की प्रतिस्पर्धा को और बढ़ावा दिया.

अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के लिए जब पतनशील तुर्की साम्राज्य की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से जर्मनी ने वर्लीन बगदाद रेल मार्ग योजना बनाई तो इंग्लैंड फ्रांस और रूस ने इसका विरोध किया. इससे कटुता बढ़ी.

सैन्यवाद

साम्राज्यवाद के समान सैन्यवाद ने भी प्रथम विश्वयुद्ध को निकट ला दिया. प्रत्येक राष्ट्र अपनी सुरक्षा एवं विस्तारवादी नीति को कार्यान्वित करने के लिए अस्त्र शस्त्रों के निर्माण एवं उनकी खरीद बिक्री में लग गया. अपने अपने उपनिवेशों की सुरक्षा के लिए भी सैनिक दृष्टिकोण से मजबूत होना आवश्यक हो गया. फलतः युद्ध के नए अस्त्र-शस्त्र बनाए गए. राष्ट्रीय आय का बहुत बड़ा भाग अस्त्र शस्त्रों के निर्माण एवं सैनिक संगठन पर खर्च किया जाने लगा. उदाहरण के लिए फ्रांस जर्मनी और अन्य प्रमुख राष्ट्र अपनी आय का 85% सैन्य व्यवस्था पर खर्च कर रहे थे. अनेक देशों में अनिवार्य सैनिक सेवा लागू की गई. सैनिकों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि की गई. सैनिक अधिकारियों का देश की राजनीति में वर्चस्व हो गया. इस प्रकार पूरा यूरोप का बारूद के ढेर पर बैठ गया. बस विस्फोट होने की देरी थी यह विस्फोट 1914 में हुआ.

उग्र राष्ट्रवाद

उग्र अथवा विकृत राष्ट्रवाद भी प्रथम विश्वयुद्ध का एक मौलिक कारण बना.

यूरोप के सभी राष्ट्रों में इसका समान रूप से विकास हुआ. यह भावना तेजी से बढ़ती गई की समान जाति, धर्म, भाषा, और ऐतिहासिक परंपरा के व्यक्ति एक साथ मिल कर रहे और कार्य करें तो उनकी अलग पहचान बनेगी और उनकी प्रगति होगी.

पहले भी इस आधार पर जर्मनी और इटली का एकीकरण हो चुका था. बाल्कन क्षेत्र में यह भावना अधिक बलवती थी. बाल्कन प्रदेश तुर्की साम्राज्य के अंतर्गत था. तुर्की साम्राज्य के कमजोर पड़ने पर इस क्षेत्र में स्वतंत्रता की मांग जोर पकड़ने लगी. तुर्की साम्राज्य तथा ऑस्ट्रिया हंगरी के अनेक क्षेत्रों में स्लाव प्रजाति के लोगों का बाहुल्य था. वह अलग स्लाव राष्ट्र की मांग कर रहे थे.

रूस का यह मानना था कि ऑस्ट्रिया-हंगरी एवं तुर्की से स्वतंत्र होने के बाद स्लाव रूस के प्रभाव में आ जाएंगे. इसलिए रूस ने अखिल स्लाव अथवा सर्वस्लाववाद आंदोलन को बढ़ावा दिया. इससे रूस और ऑस्ट्रिया – हंगरी के संबंध कटु हुए.

इसी प्रकार सर्वजर्मन आंदोलन भी चला. सर्व, चेक तथा पोल प्रजाति के लोग भी स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे. इससे यूरोपीय राष्ट्रों में कटुता की भावना बढ़ती गई

अंतर्राष्ट्रीय संस्था का अभाव

प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व ऐसी कोई संस्था नहीं थी जो साम्राज्यवाद सैन्यवाद और उग्र राष्ट्रवाद पर नियंत्रण लगाकर विभिन्न राष्ट्रों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखें. प्रत्येक राष्ट्र स्वतंत्र रुप से अपनी मनमानी कर रहा था इससे यूरोप राजनीति में एक प्रकार की अराजक स्थिति व्याप्त गई.

जनमत एवं समाचार पत्र

प्रथम विश्वयुद्ध के लिए तत्कालीन जनमत भी कम उत्तरदाई नहीं था. प्रत्येक देश के राजनीतिज्ञ दार्शनिक और लेखक अपने लेखों में युद्ध की वकालत कर रहे थे. पूंजीपति वर्ग भी अपने स्वार्थ में युद्ध का समर्थक बन गया युद्धोन्मुखी जनमत तैयार करने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका समाचार पत्रों की थी. प्रत्येक देश का समाचार पत्र दूसरे राष्ट्र के विरोध में झूठा और भड़काऊ लेख प्रकाशित करता था. इससे विभिन्न राष्ट्रों एवं वहां की जनता में कटुता उत्पन्न हुई. समाचार पत्रों के झूठे प्रचार ने यूरोप का वातावरण विषाक्त कर युद्ध को अवश्यंभावी बना दिया.

तत्कालीन कारण

प्रथम विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण बना ऑस्ट्रिया की युवराज आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड की बोस्निया की राजधानी सेराजेवो में हत्या. 28 जून 1914 को एक आतंकवादी संगठन काला हाथ से संबंध सर्व प्रजाति के एक बोस्नियाई युवक ने राजकुमार और उनकी पत्नी की गोली मारकर हत्या कर दी. इससे सारा यूरोप स्तब्ध हो गया. ऑस्ट्रिया ने इस घटना के लिए सर्विया को उत्तरदाई माना. ऑस्ट्रिया ने सर्बिया को धमकी दी कि वह 48 घंटे के अंदर इस संबंध में स्थिति स्पष्ट करें तथा आतंकवादियों का दमन करे. सर्बिया ने ऑस्ट्रिया की मांगों को ठुकरा दिया. परिणामस्वरूप 28 जुलाई 1914 को ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी. इसके साथ ही अन्य राष्ट्र भी अपने अपने गुटों के समर्थन में युद्ध में सम्मिलित हो गए. इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हुआ.

प्रथम विश्वयुद्ध का उत्तरदायित्व

प्रथम विश्वयुद्ध का उत्तरदायित्व किस पर था यह निश्चित करना कठिन है. युद्ध में सम्मिलित कोई भी पक्ष युद्ध के लिए अपने को उत्तरदाई नहीं मानता था .इसके विपरीत सभी का तर्क था कि उन्होंने शांति व्यवस्था बनाए रखने की चेष्टा की परंतु शत्रु राष्ट्र की नीतियों के कारण युद्ध हुआ. वर्साय संधि की एक धारा में यह उल्लेख किया गया था कि युद्ध के लिए उत्तरदाई जर्मनी और उसके सहयोगी राष्ट्र थे. यह मित्र राष्ट्रों का एक पक्षीय निर्णय था.

वस्तुतः प्रथम विश्वयुद्ध के लिए सभी राष्ट्र उत्तरदाई थे सिर्फ जर्मनी ही इसके लिए जवाब देह नहीं था. सर्बिया ने ऑस्ट्रिया की जायज़ मांगों को ठुकराकर युद्ध का आरंभ करवा दिया. ऑस्ट्रिया ने युद्ध की घोषणा कर रूस को सैनिक कार्रवाई के लिए बाध्य कर दिया.

सर्बिया के प्रश्न पर रूस ने भी जल्दबाजी की. सर्बिया की समस्या को कूटनीतिक स्तर पर हल करने की विपरीत उसने इसका समाधान सैनिक कार्यवाही द्वारा करने का निर्णय किया. जर्मनी की मजबूरी यह थी कि वह अपने मित्र राष्ट्र ऑस्ट्रिया का साथ नहीं छोड़ सकता था. रूस, फ्रांस और इंग्लैंड जर्मनी के घोर शत्रु थे. रूस द्वारा सैनिक कार्यवाही आरंभ होने पर जर्मनी शांत बैठा नहीं रह सकता था.

फ्रांस और रूस पर नियंत्रण रखना उसके लिए आवश्यक था. फ्रांस ने अपनी ओर से रूस को रोकने का प्रयास नहीं किया. बल्कि इसके विपरीत ऑस्ट्रिया विरोधी अभियान में रूस को पूरा समर्थन देने का आश्वासन दिया. इससे सर्विया जैसा छोटा राष्ट्र ऑस्ट्रिया, जर्मनी से युद्ध करने को तत्पर हो उठा.

इंग्लैंड ने भी युद्ध की स्थिति को टालने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया. उसने अपने सहयोगी राष्ट्रों को भी युद्ध से अलग रहने के लिए नहीं कहा. फलतः दोनों गुटों के राष्ट्र युद्ध में सम्मिलित होते गए. कोई यह अनुमान नहीं लगा सका की एक छोटा युद्ध विश्व युद्ध में परिणत हो जाएगा.

इस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध के लिए सभी राष्ट्र उत्तरदायी थे इसके लिए किसी एक राष्ट्र को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है

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