तुग़लक़ वंश के पतन के कारण
(1) साम्राज्य की विशालता-
इतिहासकारों के अनुसार तुगलक वंश के पतन का प्रमुख कारण तुगलक साम्राज्य का अत्यधिक विशाल हो जाना था। एम. एस. आयंगर के शब्दों में, "साम्राज्य का भारीपन तथा उसके विभिन्न भागों में संचार की कठिनाइयों ने प्रान्तीय गवर्नरों का स्वतन्त्रता की ओर मार्गदर्शन किया था।" उस
काल में परिवहन के साधन बहुत कम थे। अत: दिल्ली से दूर के जो प्रदेश थे, उन पर नियन्त्रण रखना एक कठिन कार्य था।
(2)योग्य सेनापतियों तथा मन्त्रियों का अभाव -
तुगलक सुल्तानों के पास योग्य सेनापतियों तथा मन्त्रियों का अभाव था। तुगलककालीन मन्त्री तथा सेनापति स्वामिभक्त न होकर षड्यन्त्रकारी थे और अपनी स्वार्थ-सिद्धि में ही लगे रहते थे।
(3) दुर्बल सैन्य संगठन-
फिरोज तुगलक ने सैन्य संगठन में जो परिवर्तन किए, उनके परिणामस्वरूप सेना अयधिक दुर्बल हो गई। उसने सैनिकों के पदों को वंशानुगत बनाकर और वृद्ध सैनिकों को सेना से अलग न कर तथा सेनापतियों को जागीरें देकर सेना को दुर्बल बना दिया।
(4) स्वार्थी प्रान्तपति (सूबेदार) -
प्रान्तीय सूबेदार जब-जब केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता को देखते, तब-तब वे विद्रोह कर देते थे। सूबेदार स्वार्थी,' महत्त्वाकांक्षी और अवसरवादी थे। उनमें राष्ट्रीय भावना का अभाव था। तुगलक सुल्तानों की अयोग्यता का लाभ उठाकर उनके सूबेदारों ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी और कई प्रान्त स्वतन्त्र हो गए।
(5) दास प्रथा को प्रोत्साहन देना -
फिरोज तुगलक ने अपने काल में दास प्रथा को विशेष प्रोत्साहन दिया। परिणामस्वरूप शासन में दासों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। कुछ दासों को तो विभिन्न प्रान्तों में महत्त्वपूर्ण पदों पर भी नियुक्त किया गया। धीरे-धीरे दासों ने अपनी शक्ति को बढ़ा लिया और राजनीति में हस्तक्षेप करने लगे। फिरोज तुगलक की मृत्यु के पश्चात् उन्होंने तुगलक साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तथा कुछ अन्य विद्रोहियों का भी साथ देने लगे।
(6)मुहम्मद-बिन-तुगलक की अव्यावहारिक नीति-
मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाओं ने दिल्ली सल्तनत की जड़ों को खोखला कर दिया। राजधानी के दिल्ली से देवगिरि ले जाना, दोआब में कर वृद्धि, ताँबे के सिक्के चलाना खुरासान व कराजल पर आक्रमण आदि योजनाओं ने पल्तनत के राजकोष को खाली कर दिया और प्रजा विरोध पर उतर आई। देशी और विदेशी अमीरों के पृथक् होने से भी तुगलक सल्तनत के पतन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
(7) फिरोज तुगलक का उत्तरदायित्व -
तुगलक वंश के पतन में सुल्तान फिरोज तुगलक का भी हाथ रहा। उसकी जागीर प्रथा, दास प्रथा, राजनीति में उलेमाओं की मध्यस्थता आदि भी सल्तनत के पतन के लिए जिम्मेदार थे। सल्तनत के विद्रोही सूबों को अधीन बनाने के लिए उसने अमीरों की बात नहीं मानी। वास्तव में वह कोमल हृदय का होने के कारण खून बहाने का विरोधी था। इस कारण वह विद्रोहों को कुचलने में असफल रहा, परिणामस्वरूप सल्तनत का पतन आवश्यक हो गया।
(8) तुगलक सुल्तानों की धार्मिक नीति -
तुगलक वंश के प्राय: सभी सुल्तान धार्मिक पक्षपात की नीति पर चलने वाले थे। हिन्दू प्रजा के साथ बुरा व्यवहार होता था। फिरोज तुगलक ने तो धार्मिक असहिष्णुता की नीति चरम सीमा पर पहुँचा दी थी। हिन्दुओं से कठोरतापूर्वक 'जजिया' (धार्मिक कर) वसूल किया जाता था। उनके अनेक मन्दिर तोड़ दिए गए। इस प्रकार के कार्यों के परिणामस्वरूप हिन्दुओं ने भी अपने को शासन का अंग नहीं समझा। वे सदा अपने को अपमानित अनुभव करते रहे। हिन्दुओं ने कभी भी सुल्तान को हृदय से समर्थन नहीं दिया।
(9) फिरोज तुगलक के अयोग्य उत्तराधिकारी -
फिरोज तुगलक के उत्तराधिकारी बड़े अयोग्य और विलासी थे। बड़े-बड़े सरदारों ने षड्यन्त्र के द्वारा उन्हें अपने हाथों की कठपुतली बना लिया था। फिरोज तुगलक की मृत्यु के पश्चात् उसके सभी उत्तराधिकारी अयोग्य सिद्ध हुए और साम्राज्य को संगठित रखने में असफल रहे। उनकी अयोग्यता का लाभ उठाकर अनेक प्रान्तीय शासक स्वतन्त्र हो गए और तुगलक साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।
(10) तैमूर का आक्रमण- 1398 ई. में समरकन्द के शासक तैमूर लंग ने दिल्ली पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में तुगलक वंश का अन्तिम शासक नासिरुद्दीन महमूद बुरी तरह पराजित हुआ और तैमूर ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। 1413 ई. में नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के साथ ही तुगलक वंश का पतन हो गया।