काम्पनिक गति या दोलन गति
काम्पनिक गति में वस्तु अपनी साम्य स्थिति के दोनो तरफ इधर-उधर गति करती है तो पिण्ड की गति दोलनी अथवा काम्पनिक गति कहलाती है । जैसे दीवार घडी में पेण्डुलम की गति , सिलाई मशीन में सुई की गति , सरल लोलक की गति , स्प्रिंग में लटके पिण्ड को थोडा नीचे खीच देने पर लोलक के द्वारा की गई गति दोलन गति या कम्पन गति का उदाहरण है ।
साम्य स्थिति :- साम्य स्थिति से तात्पर्य ऐसी अवस्था है जिसमें कोई वस्तु किसी निश्चित बिन्दु के इधर-उधर ,ऊपर नीचे अथवा आगे पीछे दोलन गति करती है तो वह वस्तु की साम्य स्थिति या माध्य स्थिति कहलाती है। इस स्थिति में वस्तु अपनी साम्य स्थिति से थेाडा आगे जाती है फिर उसी स्थिति लौटकर वापस आती है तथा फिर पीछे जाती है । यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।
कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु :-
- प्रत्येक दोलन अथवा कम्पन गति आवश्यक रूप से आवर्ती गति होती है लेकिन यह जरूरी नहीं कि सभी आवर्ती गति दोलन गति हो । जैसे- चन्द्रमा का प्रथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाना आवर्ती गति होता है लेकिन काम्पनिक गति नहीं क्योंकि चन्द्रमा अपनी पूर्व गति केा बार – बार दोहराता रहता है किन्तु वह अपनी साम्य स्थिति के इधर-उधर गति नहीं कर रहीं है ।
- अत: आवर्ती गति का दोलनी गति होने के लिये साम्य स्थिति का होना आवश्यक है।
- दोलन या कम्पन गति करते समय बस्तु पर एक बल कार्य करता है जिसकी दिशा हमेशा साम्य स्थिति के ओर होती है जिसे हम प्रत्यानयन बल कहते है । इसके फलस्वरूप बस्तु में त्वरण उत्पन्न होने लगता है ।तथा वह बस्तु कम्पन करने लगती है ।