बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता
जैसा कि हम जानते हैं कि बुद्धि का विकास अधिकतम 16 वर्ष तक ही होता है। नवीन समस्याओं को हल करने की योग्यता एवं अपने आप को व्यवस्थित करने की योग्यता का विकास 30 वर्ष तक धीरे-धीरे होता रहता है। इसके पश्चात् बुद्धि नहीं बढ़ती, ज्ञान बढ़ता है।
ज्ञान एक अर्जित शक्ति है, परन्तु बुद्धि जन्मजात योग्यता है, जिसके द्वारा व्यक्ति किसी भी समस्या को हल करने के लिये यथा सम्भव साधनों को अपनी क्षमता के अनुसार जुटाता है तथा वातावरण के अनुकूल व्यवस्थित करता है।
इस प्रकार जीवन में सफलता पाने एवं समस्याओं का भली-भाँति हल ढूँढने के लिये बुद्धि महत्त्वपूर्ण शक्ति है। मेधावी तथा प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति शासनचलाते हैं। बुद्धि के साथ दो तत्त्व 'प्रेरणा' तथा 'अनवरत अध्यवसाय' भी जीवन में सफलता दिलाने हेतु सहायक होते हैं। यदि किसी बालक की बुद्धि-लब्धि अधिक हो तो उसकी सफलता कम बुद्धि-लब्धि वाले से अधिक होगा।
अच्छे प्रशासक, वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं इन्जीनियर वही होते हैं, जिनकी बुद्धि-लब्धि अधिक होती है, जबकि अन्य सामान्य व्यवसायों के लिये विशेष अधिक I.Q. की आवश्यकता नहीं होती।
बुद्धि परीक्षणों ने विकास के मानवीय व्यवहार को असाधारण गति प्रदान की है। इसके माध्यम से वह स्वयं को पहचान कर उपयुक्त कार्य कुशलता में प्रगति करता है, जिससे राष्ट्र एवं समाज दोनों का विकास होता है। इसके द्वारा मानव की सामान्य एवं विशिष्ट दोनों ही प्रकार की योग्यताओं का पता लगाया जाता है।
गिलफोर्ड (Guilford) के अनुसार- "बुद्धि परीक्षणों द्वारा मापी जाने वाली सामान्य तथा प्राथमिकता योग्यताएँ भिन्न हैं और उनका विकास क्रम आयु के विकास के साथ-साथ होता है। मध्य अवस्था आने पर उनका ह्रास होने लगता है। इसका अधिक से अधिक विकास 20 वर्ष की आयु तक होता है इस पर यौन भिन्नता का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। अत: कछ योग्यताएँ पुरुषों में अधिक होती हैं और कुछ स्त्रियों में। दोनों में ही सामान्य योग्यता समान होती है।"
अतः शिक्षा के क्षेत्र में समान समूह एवं असमान समूह का शिक्षा के प्रबन्ध के लिये बुद्धि परीक्षणों में प्रयोग होता रहा है। इसके उपयोगों का हम निम्न आधारों का वर्णन करेंगे-
1. छात्र वर्गीकरण (Student classification)
ज्ञान की ग्रहणशीलता छात्रों की मानसिकता पर निर्भर करती है। फलस्वरूप, एक ही कक्षा-शिक्षण का निष्पादन भिन्न-भिन्न होता है। ज्ञान अर्जन बालकों की बुद्धि क्षमता पर सीधा प्रभाव डालता है। अतः छात्र वर्गीकरण में बुद्धि परीक्षाएँ उपयोगी होती हैं। वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक कक्षा में सामान्य, सामान्य से उच्च एवं सामान्य से नीचे आदि स्तरों के छात्र-छात्राएँ अध्ययनरत रहते हैं। प्रश्न उठता है कि क्या सभी बच्चों का शैक्षिक विकास उत्तम हो सकेगा? नहीं।
बुद्धि परीक्षाओं के माध्यम से शिक्षक सामान्य, सामान्य से भिन्न एवं उच्च आदि छात्रों का वर्गीकरण करके उपयुक्त शिक्षण का प्रबन्ध करेगा ताकि सभी स्तरों के छात्र-छात्राएँ पाठयक्रम को धारण करके उत्तम निष्पादन प्रस्तुत कर सकें। इस प्रकार से अध्यापकीय, छात्र एवं पाठ्यक्रम सम्बन्धी सभी समस्याएँ आसानी से समाप्त हो जाती हैं।
2. शैक्षणिक मार्ग-दर्शन (Educational guidance)
विज्ञान के साथ-साथ मनोविज्ञान ने मानवीय समस्याओं के समाधान में अपूर्व योगदान दिया है। इसके द्वारा बालकों के भविष्य निर्धारण की योजनाओं को बनाया जा रहा है। इसी प्रकार से शिक्षा के क्षेत्र में सही दिशा एवं लक्ष्य को प्राप्त करने में बुद्धि परीक्षाएँ समर्थ होती हैं। छात्र के विकास के लिये प्राथमिक एवं गौण दोनों ही प्रकार के पाठ्यक्रमों की आवश्यकता होती है।
प्राथमिक पाठ्यक्रम छात्रों को अच्छा नागरिक बनाने के लिये प्रस्तुत किया जाता है, जबकि गौण पाठ्यक्रम उनकी रुचि (Hobbies) के आधार पर निश्चित किया जाता है। बुद्धि परीक्षण के द्वारा प्रत्येक छात्र की सही उन्नति के मार्ग को प्रशस्त किया जाता है।
3. यौन भिन्नता में उपयोगिता (Useful in sex difference)
शोध कार्यों से स्पष्ट होता है कि बालक एवं बालिकाओं में बुद्धि के आधार पर ही कार्य कुशलताओं में अन्तर पाया जाता है। इनका शारीरिक एवं मानसिक विकास का क्रम भिन्न है। अतः इनमें ज्ञान अर्जन की क्षमताएँ भी भिन्न होती हैं।
स्पियरमैन के अनुसार दोनों की सामान्य एवं विशिष्ट बुद्धि में भी अन्तर पाया जाता है। इसी अन्तर को ध्यान में रखकर उनका शैक्षिक एवं व्यावसायिक क्षेत्र निश्चित किया जाता है। इस प्रकार से कुछ विशेषताएँ जो दोनों में पायी जाती है, का निर्धारण भी बुद्धि परीक्षाओं के आधार पर किया जाता है।
अत: सामाजिक व्यवस्था को सामान्य बनाने के लिये यौन भिन्नता के अन्तरों को ज्ञात करके समायोजन स्थापित किया जाता है।
4. छात्र चयन में उपयोगी (Useful in student selection)
विद्यालय के क्षेत्र में जब छात्र प्रवेश कर जाता है तो उसके विकास का कार्य विद्यालय का होता है। विद्यालय प्रशासन बुद्धि परीक्षाओं का प्रयोग करके निम्न क्षेत्रों में छात्र चयन करता है-
(i) प्रवेश (Admission)
किसी भी कक्षा के लिये छात्र का प्रवेश (Admission) बालक की शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता पर निर्भर करता है। बुद्धि परीक्षाएँ कक्षा प्रवेश में सहायक होती हैं, इससे छात्र उस कक्षा में असफल नहीं होता।
(ii) छात्रवृत्ति (Scholarship)
शिक्षा के क्षेत्र में गरीब और पिछड़े वर्ग के छात्रों का समुचित विकास करना प्रशासन का उद्देश्य रहा है। इसके लिये छात्रवृत्ति, निर्धन पुस्तक सहायता योजना और पिछड़े वर्ग को व्यक्तिगत शिक्षण योजनाएँ वर्तमान सरकार के द्वारा चलायी जा रही हैं। इनमें छात्रवृत्ति का प्रारूप बुद्धि-लब्धि के ऊपर ही निर्भर करता है। अत: बुद्धि परीक्षाएँ छात्रवृत्ति के निर्णय में सहायक होती हैं।
(iii) विशिष्ट योग्यता (Specific ability)
प्रौद्योगीकरण के विकास ने योग्यता के क्षेत्र को अत्यन्त विशाल बना दिया है। आज प्रत्येक क्षेत्र में नवीन प्रतिभाओं की खोज हो रही है। प्रतिभा खोज का प्रमुख आधार बुद्धि परीक्षाओं को ही माना जा रहा है।
5. स्वयं का ज्ञान (Self understanding)
शिक्षा का उद्देश्य बालकों का सामान्य विकास करना है। बालक अपने अन्दर की क्षमताओं एवं शक्तियों को पहचान कर अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति आसानी से कर सकते हैं। अत: बद्धि परीक्षाएँ उनके व्यक्तित्व के स्वरूप को स्पष्ट करती हैं। वह अपने अन्दर से विघटित तत्त्वों को निकाल देते हैं और संकलित तत्त्वों को विकसित करता है। इस प्रकार से वह स्वयं को जानकर सन्तुष्ट हो जाता है।
6. अधिगम प्रणाली में उपयोगी (Useful in leaming process)
सीखने की प्रक्रिया बुद्धि पर निर्भर करती है। छात्र की लगन, अभ्यास प्रक्रिया, त्रुटियों का निराकरण, धारणा, प्रोत्साहन, अधिगम स्थानान्तरण आदि में बुद्धि का सबसे अधिक प्रभाव होता है। बुद्धि परीक्षणों ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रतिभाशाली बालक कम समय में अधिक अधिगम एवं ज्ञान का स्थानान्तरण करने में समर्थ होते हैं।
7. व्यावसायिक मार्ग-दर्शन (Vocational guidance)
व्यवसाय में मनोविज्ञान ने पदार्पण करके विभिन्न समस्याओं का समाधान निकाला है। विभिन्न व्यवसायों के लिये भिन्न प्रकार के मानसिक स्तर के व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। उपयुक्त मानसिक स्तर का व्यक्ति अपने व्यवसाय वो उन्नतिमय बनाने में सहायक होता है। जब गलत व्यवसाय का चुनाव कर लेते हैं तो हमारी अभिरुचि एवं कार्यक्षमता में ह्रास होने लगता है, फलस्वरूप व्यवसाय और व्यक्ति दोनों का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
8. अनुसन्धान (Research)
शिक्षा के क्षेत्र में विकास अनुसन्धानों के ऊपर निर्भर करता है। बालकों को कक्षा के अन्दर की समस्याएँ और सामान्य समस्याओं के समाधान के लिये अनुसन्धान का सहारा लेना पड़ता है। प्रत्येक अनुसन्धान के लिये बुद्धि परीक्षण आवश्यक होता है। विभिन्न घटकों का चयन करना होता है तो बुद्धि भी एक आधार होता है ताकि कम से कम त्रुटि रहे।