अंग्रेजों द्वारा भारत में किए गए भूमि सुधार
अंग्रेज सरकार अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए मालगुजारी (भूमिकर) वसूल करने के तरीकों पर भी विचार करने लगी। वारेन हेस्टिंग्स ने यह नियम बनाया कि गाँवों की मालगुजारी वसूल करने के लिए किसी को ठेका दे दिया जाये और यदि मालगुजारी वसूल करने वाले का काम ठीक न हो तो दूसरे व्यक्ति को यह काम सौंप दिया जाय। लार्ड कार्नवालिस ने इस प्रथा में निम्न सुधार किए
स्थायी बंदोबस्त लागू
उसने अधिक से अधिक मालगुजारी वसूल करके देने वाले को नीलामी बोली के आधार पर उन्हें तथा उनके पुत्रों को आजीवन (स्थायी रूप से) उस गाँव का जमींदार घोषित कर दिया। यही जमींदारी प्रथा या स्थायी बंदोबस्त कहलाता है। अब यही लोग जमीन के मालिक हो गये किन्तु यह स्वामित्व तभी तक रहता जब तक वे मालगुजारी देते रहते थे। उन्हें जमीन जोतने-बोने वाले काश्तकारों को हटाने और उनसे जमीन छीन लेने का भी अधिकार था। यह प्रथा बंगाल, उड़ीसा और अवध प्रान्तों में प्रारम्भ की गयी।
रैयतवाड़ी प्रथा
दक्षिण भारत के मद्रास प्रांत में मालगुजारी देने का उत्तरदायित्व रैयत (काश्तकार) को सौंपा गया। मालगुजारी की धनराशि लगभग 30 वर्ष के लिए निश्चित कर दी गयी। रैयत अपनी उपज का लगभग आधा भाग सरकार को मालगुजारी के रूप में देता था।
महालवाड़ी प्रथा
उत्तर प्रदेश के पश्चिम में दिल्ली और पंजाब के आस-पास, मालगुजारी कई गाँवों के समूह के स्वामियों से वसूल की जाती थी, ये समूह ‘महाल’ कहलाते थे। इसलिए इस प्रथा को महालवाड़ी प्रथा कहते हैं। सरकार ‘महाल’ पर स्वामित्व रखने वाले से मालगुजारी वसूल करने का समझौता करती थी