सफ्रेज आन्दोलन व वस्त्र सुधार आन्दोलन
1830 ई0 के दशक तक इंग्लैण्ड में महिलाओं ने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष आरंभ किया। अब महिलाओं ने कॉर्सेट पहनने का विरोध करना आरंभ किया। वोल्ड आंदोलन के गति पकड़ने के साथ ही पोशाक-सुधार की मुहिम चल पड़ी। महिला पत्रिकाओं ने महिलाओं को इस परिप्रेक्ष्य में जागरुक करना आरंभ किया कि तंग वस्त्रों और कॉर्सेट पहनने
से महिलाओं को कौन-कौन सी शारीरिक और सौन्दर्यपरक विद्रूपताएँ आ जाती हैं।
इस पहनावे से शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को निम्न रूप में प्रस्तुत किया गया
- शरीर का प्राकृतिक रूप से विकास नहीं हो पाता है।
- रक्त प्रवाह बाधित होता है।
- रीढ़ की हड्डी झुक जाती है।
- मांसपेशियाँ अविकसित रह जाती हैं।
इंग्लैण्ड में शुरू हुए सफ्रेज आंदोलन ने यूरोप के बाहर अमेरिका को भी प्रभावित किया। महिलाओं ने अपने पहनावे से संबंधित समस्याओं को समाज के समक्ष रखना आरंभ कर दिया जैसे-
- स्कर्ट बहुत विशाल होते थे जिसके कारण चलने में परेशानी होती थी।
- लंबे स्कर्ट फर्श को साफ करते हुए चलते थे जो बीमारी का कारण थे।
- यदि पहनावे को आरामदायक बना दिया जाए तो वे भी कमाई कर सकती हैं और स्वतंत्र हो सकती हैं।
महिलाओं की इन माँगों का तीव्र विरोध भी हुआ उनके अनुसार पारंपरिक शैली छोड़ देने से महिलाओं की खूबसूरती, शालीनता तथा अन्य स्त्रियोचित गुणों का अभाव संभव था। इस प्रकार के विरोध के कारण ही महिला परिधानों में इस प्रकार के परिवर्तन प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत ही संभव हो सके।