पृथ्वी के चारों ओर वायु के आवरण को वायुमण्डल कहा जाता है। वायुमण्डल’ शब्द दो शब्दों के संयोग से बना है-वायु + मण्डल अर्थात् वायु का विशाल आवरण, जो पृथ्वी को चारों ओर से एक खोल की भाँति घेरे हुए है। इसका न कोई रंग है, न स्वाद और न ही गन्ध, परन्तु इसकी उपस्थिति का अनुभव इसके विभिन्न तत्त्वों द्वारा होता है। यदि पृथ्वी पर वायुमण्डल न होता तो किसी भी प्रकार के जीवधारी या वनस्पति की कल्पना करना भी व्यर्थ था। फिंच और ट्रिवार्था के शब्दों में, “वायुमण्डल विभिन्न गैसों का आवरण है, जो धरातल से सैकड़ों मील की ऊँचाई तक विस्तृत है तथा पृथ्वी का अभिन्न अंग है।”