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Pratham Singh in भूगोल
वायुमण्डल में तापमान विलोम का वर्णन कीजिए।

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Deva yadav

तापमान का विलोम अथवा ताप का व्युत्क्रमण

वायुमण्डल में ऊँचाई के अनुसार तापमान कम होता जाता है। ऐसा मुख्य रूप से 8 किमी से 18 किमी की ऊँचाई तक ही होता है। सामान्य रूप से प्रति किमी की ऊँचाई पर 65° सेग्रे ताप कम हो जाता है, परन्तु कुछ विशेष परिस्थितियों में तापमान घटने के स्थान पर बढ़ जाता है, जिसे ऋणात्मक ताप-पतन दर (Negative Lapse Rate of Temperature) कहते हैं। इससे तापमान की ऊर्ध्वाधर प्रवणता बदल जाती है। इस अवस्था में वायु की गर्म परतें ऊपर पहुँच जाती हैं तथा शीतल परतें नीचे आ जाती हैं। तापमान की इस दशा को तापमान का विलोम या तापमान का प्रतिलोमन अथवा ताप का व्युत्क्रमण कहा जाता है।
ताप का यह प्रतिलोमन धरातल के निकट भी हो सकता है तथा ऊँचाई पर भी। परन्तु धरातल के निकट होने वाला प्रतिलोमन अस्थायी होता है, जबकि ऊँचाई पर होने वाला प्रविंलोमन स्थायी होता है; क्योंकि अधिक ऊँचाई पर वायु की परतों को ठण्डा होने में अधिक समय लग जाता है। तापीय प्रतिलोमन ध्रुवीय प्रदेशों, हिमाच्छादित प्रदेशों एवं घाटियों में अधिक होता है। गर्म एवं ठण्डी धाराओं के मिलन-स्थल पर भी इस प्रकार की अवस्थाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। तापमान के सम्बन्ध में ट्रिवार्था ने कहा है कि “ऐसी अवस्था जिसमें शीत-प्रधान वायु धरातल के चित्र निकट व उष्ण वायु ऊपर पायी जाती है, तापमान का व्युत्क्रमण कहलाता है।”

तापीय विलोमता के प्रकार

ताप की विलोमता के निम्नलिखित प्रकार हैं
1. धरातलीय विलोमता (Surface Inversion)-इस प्रकार की ताप विलोमता पृथ्वी के विकिरण द्वारा अधिक ऊर्जा के प्रवाहित होने से होती है। विपरीत अर्थात् शीतल एवं उष्ण वायुराशियों के आगमन से भी धरातलीय विलोमता उत्पन्न हो जाती है।

2. उच्च धरातलीय विलोमता (Upper Surface Inversion)-धरातल से कुछ ऊँचाई पर वायु-राशियों के अवतलन से इस प्रकार की विलोमता उत्पन्न होती है। यह प्रतिचक्रवातों पर निर्भर करता है। वायु की उष्ण परतें ऊपर तथा शीतल परतें नीचे हो जाती हैं। इससे वायुमण्डल में स्थिरता आ जाती है।

वायुमण्डल की ओजोन परत के ऊपर सर्वाधिक ताप तथा निचली परत में कम ताप मिलता है। यह भी उच्च धरातलीय विलोमता का उदाहरण है।

3. वाताग्री विलोमता (Frontal Inversion)-जब उष्ण एवं शीत प्रधान वायुराशियाँ पास-पास होती हैं, तो उष्ण वायु शीतल वायु के ऊपर फैल जाती है। जिस ओर इन वायुराशियों का ढालें होता है, उसे वाताग्र (Front) कहते हैं। तापक्रम एवं आर्द्रता के कारण यह विलोमता उत्पन्न होती है।

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