वायुमण्डल का महत्त्व
वायु केवल मानव के लिए ही आवश्यक नहीं है, अपितु जल, थल तथा वायुमण्डलों में निवास करने वाले सभी प्राणिमात्र, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों आदि सभी के लिए अनिवार्य है। वायु के अभाव में प्राणिमात्र एक पल भी जीवित नहीं रह सकता। वायु द्वारा ही सभी वायुमण्डलीय प्रक्रियाएँ-ताप, वायुदाब, वर्षा, तुषार, कोहरा, पाला, विद्युत चमक, ऋतु-परिवर्तन आदि निर्धारित होते हैं।
जलवायु का निर्धारण भी वायुमण्डल द्वारा ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त कृषि-क्रियाओं पर वायुमण्डल का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। पूर्वी एशियाई कृषि-प्रधान देशों में वायुमण्डलीय क्रियाओं से भारी धन-जन की हानि होती है। वास्तव में कृषक का भाग्य ही इस वायुमण्डल से जुड़ा हुआ है। पश्चिमी यूरोपीय देशों में फलों की कृषि वायुमण्डलीय दशाओं पर निर्भर करती है। यही नहीं, उद्योग-धन्धे भी इन्हीं क्रियाओं से ही जुड़े हुए हैं।
वायुमण्डल में पायी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन का प्रभाव वनस्पति तथा जीव-जन्तुओं पर अधिक पड़ता है। पश्चिमी देशों में कृषक अपनी कृषि भूमि में नाइट्रोजन की पूर्ति अन्य विधियों से कर लेते हैं तथा अधिक उत्पादन प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत भारतीय कृषि में कम उत्पादन का कारण नाइट्रोजन की पूर्ति न कर पाना है। कार्बन डाइऑक्साइड गैस से वनस्पति जगत की श्वसन क्रिया चलती है। यही कारण है कि विषुवतरेखीय प्रदेशों में इस गैस की अधिकता के कारण ही सघन वनस्पति का आवरण छाया हुआ है, जबकि टुण्ड्रा एवं टैगा प्रदेशों में इस गैस की कमी मिलती है; अतः ।
यहाँ वनस्पति भी विरल रूप में ही पायी जाती है। वायुमण्डल में व्याप्त अन्य गैसें-हाइड्रोजन, हीलियम, नियॉन, क्रिप्टॉन, ऑर्गन, ओजोन, जेनॉन आदि–भी प्राणिमात्र के लिए किसी-न-किसी रूप में लाभ पहुँचाती हैं। उदाहरण के लिए वायुमण्डल की ओजोन गैस का आवरण सूर्य की तीक्ष्ण पराबैंगनी किरणों को अपने में सोख लेता है। यदि यह गैस न होती तो पृथ्वी पर जीव-जगत न होता अर्थात् प्राणिमात्र तीक्ष्ण गर्मी से झुलस जाता और धरा जीवनशून्य हो जाती।