अपरदन के प्रकार
अपरदन के विभिन्न रूप अपरदन की भिन्न-भिन्न क्रियाओं में सम्पन्न होते हैं, जिनका विवरण निम्नलिखित है
1. अपघर्षण (Abrasion or Corrasion)-अपरदन क्रिया में अपघर्षण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। धरातल पर एकत्रित अवसाद को जब अपरदन के कारक-वायु, नदियाँ, हिमानी, समुद्री लहरें आदि-उड़ाकर या बहाकर ले जाते हैं तो मार्ग में बड़े-बड़े शिलाखण्ड धरातल को स्वयं खुरचते चलते हैं। इस प्रकार ये कंकड़-पत्थर धरातल पर अपरदन के यन्त्रों का कार्य करते हैं। इससे
अपरदन क्रिया को बल मिलता है।
2. सन्निघर्षण (Attrition)-सन्निघर्षण की क्रिया प्रमुख रूप से नदी, हिमानी, वायु तथा समुद्री लहरों द्वारा होती है। इस क्रिया में धरातल के असंगठित पदार्थ जो अपरदन के कारकों द्वारा बहाकर या उड़ाकर ले जाए जाते हैं, वे आपस में भी टकराकर चलते हैं जिससे उनका आकार और भी छोटा होता जाता है। बाद में ये चूर्ण अर्थात् रेत में परिणत होकर मिट्टी में मिल जाते हैं।
3. घोलीकरण (Solution)-यह जल द्वारा की जाने वाली रासायनिक क्रिया है। वर्षा के जल में कार्बन डाई-ऑक्साइड गैस मिली होने के कारण जल घोलन के रूप में कार्य करता है। यह जल चट्टानों में मिले हुए खनिज पदार्थों को घोलकर अपने साथ मिला लेता है तथा अन्यत्र बहा ले जाता
4. जलगति क्रिया (Hydraulic Action)-यह एक यान्त्रिक क्रिया है। इसमें बहता हुआ जल अपने वेग तथा दबाव के कारण मार्ग में स्थित चट्टानी-कणों को अपने साथ बहाकर ले जाता है।
5. अपवाहन (Deflation)-अपवाहन में वायु मुख्य कारक होती है जो भौतिक अपक्षय से विखण्डित पदार्थों को उड़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है। यह क्रिया शुष्क मरुस्थलीय भागों में अधिक होती है।
6. निक्षेपण (Deposition)-अपरदन के विभिन्न कारक परिवहन कार्य करने के बाद अपने साथ लाये गये मलबे को अपनी वाहन शक्ति के अनुसार जगह-जगह छोड़ते जाते हैं, जिसे निक्षेपण कहते हैं। निक्षेपण क्रिया से धरातल ऊँचा-नीचा हो जाता है। इस कार्य को बहता हुआ जल (नदी), भूमिगत जल, हिमानी, वायु तथा सागरीय लहरें सम्पन्न करती हैं। निक्षेपण की इस अवस्था में धरातल पर विभिन्न भू-आकृतियों का जन्म एवं विकास होता है।